आसो: २४८६ : १प :
निश्चयथी जेम धननो अर्थी पुरूष बहु उद्यमथी प्रथम तो राजाने जाणे के ‘आ राजा छे’ ....
तेम मोक्षार्थी पुरुषे प्रथम तो बहु उद्यमथी आत्माने जाणवो के “आ चैतन्यपणे जे अनुभवाय छे ते ज
हुं छुं.” पछी, जेम ते पुरुष राजाने जाणीने तेनुं श्रद्धान करे छे के आ अवश्य राजा ज छे ने तेना
सेवनथी मने जरूर धननी प्राप्ति थशे....तेम मोक्षार्थी पुरुषे पण चैतन्यस्वरूप आत्माने जाणीने तेनुं
श्रद्धान करवुं के आवो चैतन्यस्वरूप आत्मा ज हुं छुं....तेनुं ज सेवन करवाथी परम आनंदरूप मोक्षनी
प्राप्ति थशे. आवा ज्ञान–श्रद्धान करीने पछी, जेम ते पुरुष राजाने सर्वप्रकारे अनुसरीने तेनी सेवाथी
तेने प्रसन्न करे छे तेम मोक्षार्थी जीवे सर्व प्रकारना उद्यमपूर्वक चैतन्यस्वभावनुं ज अनुचरण करवुं
एटले के तेना ज अनुभवमां लीन थवुं.–आम करवाथी साध्य आत्मानी सिध्धि थाय छे. बीजी रीते
थती नथी.
देहथी भिन्न चैतन्यमूर्ति आत्मा स्वतंत्र वस्तु छे; ते आत्मा कदी नवो उत्पन्न थयो नथी ने कदी
पण तेनो नाश थतो नथी; पोताना ज्ञानस्वरूपे ते त्रिकाळ टकी रहे छे. अत्यार सुधी तेणे शुं कर्युं? के
पोताना वास्तविक स्वरूपने भूलीने ८४ लाख योनीमां अनंत अवतार कर्या, स्वर्गमां पण अनंतवार
गयो ने नरकमां पण अनंतवार गयो, तिर्यंच पण अनंतवार थयो ने मनुष्य पण अनंतवार थयो.–
ओळखाण करीने तेमां ठरे तो चार गतिनुं परिभ्रमण टळे.
भाई, तारुं सुख पण परमां नथी ने तारुं दुःख पण परमां नथी. तारो मोक्ष अने संसार बंने
तारामां ज छे. ‘मोक्ष कह्यो निज शुद्धता’–चैतन्यस्वरूपना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रवडे पूर्ण शुद्धता प्रगटे ते
ज मोक्ष छे; अने राग–द्वेष–मोहरूप जे अशुद्धता छे ते ज संसार छे. जीवनो संसार बीजा पदार्थोमां
नथी, तेमज जीवनो मोक्षमार्ग पण बीजा पदार्थोमां नथी. ‘अपने को आप भूलके हैरान हो गया....’
अंतरमां चैतन्यतत्त्वने ओळखीने तेनी सेवा करवी–आराधना करवी–ते ज चारगतिनी हेरानगतीथी
छूटवानो उपाय छे.
आ चैतन्यमूर्ति आत्माने जन्म धारण करवो पडे, देह धारण करवो पडे ते शरम छे. ते
शरमजनक जन्मो केम टळे तेनी आ वात छे.
ध्यान वडे अभ्यंतरे देखे जे अशरीर,
शरमजनक जन्मो टळे, पीए न जननी क्षीर. ६०
पहेलां अंतरमां आत्मानी धगश लागवी जोईए......अरे, हुं चैतन्यमूर्ति सिद्धभगवान जेवो
आत्मा, मारो आनंद मारामां, ने मारे आवा अवतार करवा पडे–ए शरम छे! मारां चैतन्यनिधान
मारामां छे–ते खोलीने हुं शरमजनक जन्मोनो अंत करुं–आम अंतरमां मोक्षार्थी थईने आत्मानी खरी
जिज्ञासा जागे, ते जीव प्रयत्नपूर्वक–सर्व उद्यमथी पोताना आत्माने जाणे छे, श्रद्धे छे ने तेने ज
अनुसरे छे. भाई, आवा आत्माना अनुभव विना बीजुं बधुं ते अनंतवार कर्युं.–
मुनिव्रतधार अनंतवार ग्रीवक उपजायो,
पै निज आतमज्ञान बिन सुख लेश न पायो.
आत्माना ज्ञान वगर त्यागी थईने अनंतवार तें मुनिव्रत पाळ्या, ने १६ स्वर्गथी पण उपर
नवमी ग्रैवेयक सुधी अनंतवार गयो, पण तेथी शुं मळ्युं? आत्मानुं सुख तो किचिंत् पण न मळ्युं. जो ते
व्रतादिना शुभरागथी तुं तारूं कल्याण मानतो हो तो तुं छेतराय छे; ऊंधी मान्यताथी तारा आत्माने तुं ज
छेतरी रह्यो छे. संतो पोताना अनुभवनी वात करीने तने समजावे छे के अरे जीव! तुं तो चैतन्य छो,
तारो अनुभव तो चैतन्यरूप छे, तारो स्वाद तो चैतन्यमय छे. “चैतन्यस्वादपणे जे अनुभवाय ते ज हुं
छु”–एम स्वसंवेदनथी श्रद्धा–ज्ञान कर, ने पछी तेमां ठर....ए ज मुक्तिने उपाय छे.
मोक्षार्थी जीवे मोक्षने साधवा माटे शुं करवुं? ते वात आचार्यदेवे आ गाथामां राजानो दाखलो
आपीने बहु सरस रीते समजावी छे. जेने राजा पासेथी पोतानुं