Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म: २०४
आत्माने साधवा माटे मोक्षार्थीए शुं करवुं?
(वीर सं. २४८प
वैशाख सुद पांचम)
दक्षिणना तीर्थधामनी उमंगभरी यात्रा करीने पाछा
फरतां वच्चे देहगाम मुकामे पू. गुरुदेव पधार्या....त्यारे
देहगामना जैनसमाजे उत्साहथी स्वागत करीने, मोटी
संख्यामां पू. गुरुदेवना प्रवचननो लाभ लीधो हतो. ते
प्रवचननो सार अहीं आपवामां आव्यो छे. आत्मस्वरूपने
समजवानी खास प्रेरणा पू. गुरुदेवना प्रवचनमां तरी आवे
छे......आत्मस्वरूपने कई रीते साधवुं–ते वात आचार्य
भगवंतोए समयसार गाथा १७–१८ मां बहु सरस रीते
समजावी छे तेना उपरनुं आ प्रवचन छे. आत्मार्थीताना रसथी
झरतुं आ प्रवचन दरेक जिज्ञासुने जरूर आनंदित करशे.
देहथी भिन्न आत्मतत्त्व शुं चीज छे ते जाण्या विना जीव अनादिथी संसारमां परिभ्रमण करी
रह्यो छे. ते परिभ्रमण केम टळे तेनी आ वात छे. आचार्यदेव कहे छे के बीजी चिंताथी तो बस थाओ,
परंतु आत्मामां भेदना विकल्पोरूप चिंताथी पण साध्यआत्मानी सिद्धि नथी एटले के आत्मानो
अनुभव थतो नथी. साध्यआत्मानी सिद्धि तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रथी ज थाय छे, बीजी रीते थती
नथी. माटे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे शुद्धआत्माने सेववो (आराधवो, अनुभववो) ते ज
मोक्षार्थीजीवनुं प्रयोजन छे. मोक्षार्थीए पोतानुं आवुं प्रयोजन सिद्ध करवा माटे शुं करवुं ते वात
आचार्यदेव द्रष्टांत आपीने समजावे छे.–(समयसार गाथा १७–१८)
जयम पुरुष कोई नृपतिने जाणे,
पछी श्रद्धा करे,
पछी यत्नथी धन–अर्थी ए
अनुचरण नृपतिनुं करे.
जीवराज एमज जाणवो,
वळी श्रद्धवो पण ए रीते,
एनुं ज करवुं अनुचरण
पछी यत्नथी मोक्षार्थीए.
जेम धननो अर्थी पुरुष धनने माटे राजानी सेवा करे छे तेम मोक्षना अभिलाषी मोक्षार्थी जीवे
मोक्षने माटे चैतन्यराजानुं सेवन करवुं.–कई रीते सेवन करवुं? ते बतावे छे: