Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष सत्तरमुं: अंक १२ मो संपादक: रामजी माणेकचंद दोशी आसो: २४८६
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ज्ञा न द र्प ण
लगभग २प० वर्ष पहेलां जयपुर राज्यमां एक अध्यात्मप्रेमी कवि
दीपचंदजी थई गया, अनुभवप्रकाश, परमात्मापुराण वगेरे अनेक अध्यात्म
ग्रंथोनी रचनाद्वारा तेमणे पोतानो अध्यात्मरस वहेतो मूक््यो छे. तेमनी कथनशैली
केटली सरल, अने छतां केटली असरकारक छे ते ‘अनुभवप्रकाश’ वांचनारने
ख्यालमां हशे. तेमना रचेला पांच ग्रंथोनो संग्रह “अध्यात्म पंच संग्रह” तरीके
प्रसिद्ध थयेल छे, तेमां “ज्ञानदर्पण” पद्यरूपे छे: आ ज्ञानदर्पणमां सम्यग्द्रष्टि संतनी
परिणतिनुं सुंदर महिमाभर्युं वर्णन कर्युं छे. कुल १९६ पद छे, तेमांथी कोई कोई
पदो अर्थ सहित अहीं आपीए छीए–जेथी जिज्ञासु पाठको तेना अध्यात्मरसनुं
आस्वादन करी शके.
निजभावनामें आनंद लीजिए
(कवित)
परम पदारथ को देखे परमारथ हवै, स्वारथ स्वरूपको अनूप साधि लीजिए,
अविनाशी एक सुखराशि सोहे घटहीमें, ताको अनुभौ सुभाव सुधारस पीजिए;
देव भगवान ज्ञानकालको निधान जाको, उरमें अनाय सदाकाल धिर कीजिए,
ज्ञान हीमें गम्य जाको प्रभुत्व अनंतरूप, वेदी निजभावनामें आनंद लहीजिए.ाा ४ाा
भावार्थ:– परम पदार्थने देखतां परमार्थ सधाय छे, माटे तेने देखीने पोताना
निज–प्रयोजनरूप अनुपम स्वरूपने साधी ल्यो अविनाशी एकरूप सुखराशी अंतरमां ज
सोहे छे तेनो अनुभव करीने स्वभाव–सुधारसनुं पान करो.....ज्ञानकळानो निधान एवो
भगवान चैतन्यदेव, तेने अंतरमां लावीने सदाकाळ स्थिर करो....जेनुं अनंत प्रभुत्व
ज्ञानमां ज गम्य छे एवा ते परम पदार्थने वेदीने निजभावनामां आनंद लिजिए.
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