Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८६ : ३ :
आत्मार्थी जीव चैतन्यने जरूर साधे छे
(आत्मार्थ साधवा माटे आत्मार्थी जीवनो उल्लास अने विश्वास
केवो होय? ते गुरुदेव अद्भुत रीते अहीं समजावे छे.)
जेने चैतन्यने साधवानो उत्साह छे तेने चैतन्यना साधक
धर्मात्माने देखतां पण उत्साह अने उमळको आवे छे: अहा! आ
धर्मात्मा चैतन्यने केवा साधी रह्या छे! एम तेने प्रमोद आवे छे,
अने हुं पण आ रीते चैतन्यने साधुं–एम तेने आराधनानो
उत्साह जागे छे. चैतन्यने साधवामां हेतुभूत एवा संतगुरुओने
पण ते आत्मार्थी जीव सर्व प्रकारनी सेवाथी राजानी जेम रीझवे छे
ने संत–गुरुओ तेना उपर प्रसन्न थईने तेने आत्मप्राप्ति करावे छे.
ते मोक्षार्थी जीवना अंतरमां एक ज पुरुषार्थ माटे घोलन छे
के कई रीते हुं मारा आत्माने साधुं?–कई रीते मारा आत्माना
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रने प्रगट करुं? आत्मामां सतत आवी धून
वर्तती होवाथी ज्यां संत गुरुए तेना श्रद्धा–ज्ञानादिनो उपाय
बताव्यो के तरत ज तेना आत्मामां ते प्रणमी जाय छे. जेम धननो
अर्थी मनुष्य राजाने देखतां ज प्रसन्न थाय छे अने तेने विश्वास
आवे छे के हवे मने धन मळशे ने मारी दरिद्रता टळशे; तेम
आत्मानो अर्थी मुमुक्षु जीव आत्मप्राप्तिनो उपाय दर्शावनारा
संतोने देखतां ज परम प्रसन्न थाय छे...तेनो आत्मा उल्लसी जाय
छे के अहा! मने मारा आत्मानी प्राप्ति करावनार संत मळ्‌या...हवे
मारा संसारदुःख टळशे ने मने मोक्षसुख मळशे. आवो उल्लास
अने विश्वास लावीने, पछी संत–धर्मात्मा जे रीते चैतन्यने
साधवानुं कहे छे ते रीते समजीने पोते सर्व उद्यमथी चैतन्यने जरूर
साधे छे.