किनारो अत्यंत नजीक आवी गयो छे, अल्पकाळमां तेओ भवने छेदीने मोक्ष पामवाना
छे.–आवा भवछेदक पुरुषनी वाणी छे, ते वाणी पण भवछेदक छे. भवनो छेद करवानो
उपाय आ वाणी बतावे छे.
भव्यजीवोने माटे आ प्रवचनसारनी टीका रचाय छे. जेने चैतन्यना परमआनंदनी ज
पिपासा छे, जगतनी बीजी कोई लप जेनां अंतरमां नथी, अरे! अमारा चैतन्यनुं
अमृत अमारा अंतरमां ज छे–एम जेनी जिज्ञासानो दोर आत्मा तरफ वळ्यो छे, एवा
भव्यजीवोना आनंद माटे–हितने माटे आ टीका रचवामां आवे छे. जुओ, आ श्रोतानी
जवाबदारी बतावी; श्रोता केवो छे? के चैतन्यना परमानंदरूपी अमृतनो ज पिपासु छे,
ए सिवाय संसारनी कोई चीजनो, माननो, लक्ष्मीनो, पुण्यनो, के रागादिनो पिपासु जे
नथी, आवा जिज्ञासुश्रोताने माटे आ “तत्त्वप्रदीपिका” रचाय छे. तरता पुरुषनी आ
वाणी भवछेदक छे.
छे. आ शास्त्रद्वारा आचार्यदेव परमानंदना पिपासु भव्यजीवने यथार्थ तत्त्वोनु स्वरूप
समजावे छे, –ज्ञान अने ज्ञेय तत्त्वोनुं यथार्थस्वरूप समजतां भेदज्ञानज्योति प्रगटे छे
ने जीव परम आनंदने पामे छे.
परिणाममां वास्तविक सुख नथी. परमानंदरूप जे ज्ञानतत्त्व छे तेमां शुभ के अशुभ