परिणाममां किंचित् सुख के मोक्षमार्ग नथी. चोथा गुणस्थानथी मोक्षमार्गनी शरूआत
थई होवा छतां जे शुभोपयोग छे ते कंई मोक्षमार्ग नथी. मोक्षमार्ग राग वगरनी जे
शुद्धता प्रगटी तेमां ज छे. ए सिवाय अशुभ के शुभ (सम्यद्रष्टि के मिथ्याद्रष्टि) ते
बंनेमां दुःखनुं साधनपणुं समानपणे छे, जेम पापने उत्पन्न करनार अशुभ उपयोग ते
दुःखनुं ज कारण तेम पुण्यने उत्पन्न करनार शुभउपयोग पण ते अशुभोपयोगनी
माफक ज दुःखनुं साधन छे.–एम ७२मी गाथामां समजावे छे.
कोने समजावे छे?–के जे जीव चैतन्यना परम आनंदनो पिपासु छे तेने समजावे छे–
तो जीवनो उपयोग ए शुभ ने अशुभ कई रीत छे? ७२.
अभाव छे, बंने आत्माना शुद्धोपयोगथी विलक्षण छे, बंने अशुद्ध छे, स्वाभाविक सुख
तो शुद्धोपयोगमां ज छे. जेने रागमां–पुण्यमां–शुभमां सुख लागतुं होय ते जीव खरेखर
परमानंदनो पिपासु नथी. सम्यग्दर्शनमां प्राप्त थतुं जे परमसुख तेनी तेने खबर नथी.
शुभना फळरूप जे पुण्य–तेमां झंपलावीने जेओ पोताने सुखी माने छे तेवा जीवोने
चैतन्यना परमानंदनी खबर नथी, चैतन्यना परमानंदने भूलीने कायरताथी तेओ
ईंद्रियविषयोमां झंपापात करे छे, तेओ दुःखमां ज पड्या छे. नरकनो नारकी के स्वर्गनो
देव–ए बंने जीवो ईन्द्रियविषयोथी ज दुःखी छे.
श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
शुं कुटुंब के परिवारथी वधवापणुं ए नय ग्रहो?
एनो विचार नहि अहोहो, एक पळ तमने हवो!