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संसारके क्षणिक भोगों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य अंङ्गीकार
करने की जो क्रांति स्वर्णपुरी में चल रही है उसका नैतृत्व आपही के हाथों हो रहा
है। कितनी विशुद्ध है यह क्रांति! कितना स्तुत्य है आपका यह प्रयास! जो यदि विश्व
में प्रचार पा सके तो जीवन की कितनी ही विषमताएं बिना प्रयास समाप्त हो जायें।
स्वर्णपुरी के महिला–ब्रह्मचर्याश्रम की तो आप प्राण है। कितना सहज है आपका
अनुशासन, जिसमें भय नहीं, जिसमें रोष नहीं। चालीस ही बालाओं की दिनचर्या जड
मशीन की भांति नियमित सहज ही चलती रहती है। न केवल ब्रह्मचर्याश्रम वरन् वहां
के प्रत्येक ही धार्मिक क्रिया कलाप को मानों आप ही के अदम्य धार्मिक उत्साह से
गति मिलती है। प्रत्येक ही भद्र पुरुष और महिला के हृदय में आप प्रतिष्ठित हैं। अतः
आपके बिना वहां सभी कुछ श्री–विहीन है। स्वर्णपुरी का विशाल भव्य जिनालय और
ऐसी ही भव्य रचना आपही के अथक श्रम के मधुर प्रसाद है। अंतरंग जीवन के
परिष्कार के साथ बाह्य अवस्था का यह विधान अन्यत्र सुलभ नहीं है।
भगवान् जिनेन्द्र के प्रति आपकी भक्ति! अहो वह सुनिर्वचनीय है। कितनी
तन्मयता हैं उसमें मानों उनके अनंत वैभव से आपका चिर परिचय रहा हो। चैतन्य
की अन्तर अनुभूति से इस अनन्य भक्ति की सृष्टि होती है। जिसे अपने अन्तरंग सौंदर्य
का प्रतिभास हुआ भक्ति के माध्यम से भगवान के अमित वीतराग–सौंदर्य की आभा भी
उसे ही मिली। जैन–भक्ति का यह सिद्धांत आपके जीवन में पूर्णतः चरितार्थ हुआ है।
स्वर्णपुरी के शांत दिव्य आश्रम में पूज्य गुरुदेव और आपका योग मानों मणि–
कांचन संयोग है। मुक्ति के पावन पथ में संयोग की यह धारा युग युग तक अखंड
प्रवाहित होती रहे यही हमारी कामना है।
आप महान है। हम पामर कैसे आपका स्वागत करें! एक मात्र यही अभिलाषा
है कि आप चिरजीवें और आपके पुनीत आशीर्वाद हमारे जीवन में साकार होते चलें।।
और समग्र भारतीय महिला समाज का तमसावृत्तजीवन–पथ आपके अन्तर–आलोक से
आलोकित होता रहे।
अन्त में एक बार पुनः आपके स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हुई हम
हृदय से आपका अभिनन्दन करती है।
वैशाख कृष्ण ८–वीर नि॰ सं॰ १४८० हम है आपकी चरण चंचरीकायें–
दि॰ ३० अप्रैल १६५६ ई॰ दि॰ जैन महिला समाज कोटा की मुमुक्षु महिलायें
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