Atmadharma magazine - Ank 205
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक १ लो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी कारतक : २४८७
नूतन वर्षना प्रारंभे...
परम पूज्य गुरुदेवना ज्ञानसागरमांथी वहेता शांत
अध्यात्मरसना झरणांने झीलतुं आ आत्मधर्म–मासिक १७ वर्ष
पहेलां शरू थयुं... आजे ते १८ मा वर्षमां प्रवेश करे छे. आ
आत्मधर्म–मासिकद्वारा मने परमकृपाळु गुरुदेवनी चरणसेवानो
सुअवसर प्राप्त थयो तेने हुं मारा जीवननुं मोटुं सद्भाग्य
मानुं छुं.
गुरुदेवना चरण–शरणना प्र्रतापे मने जगतमां
सर्वोत्तम एवा देवनी, जगतमां सर्वोत्तम एवा गुरुनी,
जगतमां सर्वोत्तम एवा धर्मने धर्मात्माओनी प्राप्ति थई... आ
रीते सर्वोत्तम ईच्छित वस्तुओना दातार गुरुदेवे आ बाळकना
जीवनमां जे अपार उपकारो कर्या छे.. जे कृपाद्रष्टि वरसावी छे
तेनुं स्मरण करीने, भावभीना हृदये परमभक्तिथी गुरुदेवना
चरणोमां नमस्कार करुं छुं.
जीवनमां आत्महित साधवा माटेनी नवी नवी उर्मिओ
नवी नवी भावनाओ पूर्वक संतोना शरणे नवा वर्षनो मंगल
प्रारंभ करतां, संतजनोना चरणे शीर नमावीने आशीर्वाद
मांगीए छीए के आत्महितनी आपणी उर्मिओ–भावनाओ
सफळ थाय... ने... आपणे आत्मसुख पामीए.
– हरि
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