Atmadharma magazine - Ank 205
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA REGD. No. B. 4787
पावापुरी सिद्धिधाममां जलमंदिरनी यात्रा करीने पू. गुरुदेव पधारी रह्या छे.
त्रण प्रश्नो
(१) समयसारनी एवी बे गाथाओ शोधी काढो...के जे
समयसारमां ज फरीने बीजी वखत आवती होय.
(२) एक भगवान एवा, के भारे जोवा जेवा!
– एनो पहेलो अक्षर बधा बाळकोने बहु ज वहालो छे.
छेल्ला त्रण अक्षरमां एक नगरी समाई जाय छे.
–ई कोण?
(३) वैभव छे अपार, पण खाता नथी लगार...
छतांय लोभी नथी............. – ई कोण?
(जवाबो आवता अंकमां)
उपरना त्रण प्रश्नोना जवाब कारतक सुद पुनम सुधीमां,
पोस्टकार्डमां लखी मोकलवा. जेना बधा जवाब साचा हशे तेनुं
नाम आत्मधर्ममां प्रसिद्ध थशे.
सरनामुं : “आत्मधर्म–बालविभाग”
जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ (सैाराष्ट्र)
नौका मोक्षपुरीमां जाय
आवो बाळको तमाम,
करो एक सुंदर काम;
भवसागर करवाने पार,
बेसो नौका मंझार.
नौकाना सुकानी कान,
करावे आत्मानुं भान;
भान करतां आनंद थाय,
नौका मोक्षपुरीमां जाय.
(बधा बाळको एक साथे गावाथी
विशेष आनंद आवशे)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने प्रकाशक : हरिलाल देवचंद शेठ : आनंद प्रि. प्रेस– भावनगर.