Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 21

background image
वर्ष अढारमुं : अंंक २ जो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी मागसर : २४८७
नहि नमशे.नहि नमशे.
नियमसारनुं मंगलाचरण करतां टीकाकार मुनिराज पोताना हृदयमां जिनेन्द्र
भगवानने स्थापीने पहेला ज श्लोकमां कहे छे के हे जिननाथ! आप होतां हुं बीजाने
केम नमुं? आपना जेवा पूर्ण वीतरागी सर्वज्ञदेव ज्यां मारा हृदयमां बिराजे छे त्यां
बीजा रागी अज्ञानी प्राणीओने हुं केम नमुं? हे नाथ! मारा हृदयमां तो में आपने ज
स्थाप्या छे. मारा हृदयमां आप होतां हुं बीजाने केम नमुं? न ज नमुं.
जुओ, आ अपूर्व मंगलाचरण! पोताना हृदयमां जेणे वीतरागी जिनेन्द्र
भगवानने स्थाप्या तेनी परिणति रागथी पाछी फरीने स्वभाव तरफ झूकी गई...ते
परिणति हवे राग तरफ नमती नथी. चैतन्यस्वभावना भारथी भारे थयेली अंतर्मुख
परिणति राग तरफ केम नमे? अने रागथी लाभ मनावनारानो आदर ते केम करे? न
ज करे. तेथी अहीं साधक धर्मात्मा निःशंकताथी कहे छे के हे जिननाथ! आपना मार्गने
पामीने स्वभाव तरफ झूकेली अमारी परिणति हवे विभावो तरफ नहि नमे...नहि
नमे. जिनमार्ग सिवाय बीजा कोई मार्गमां अमारी परिणति हवे नहीं जाय. साक्षात्
अमृतने पाम्या पछी झेरनुं सेवन कोण करे? तेम जिनेन्द्रदेव मळ्‌या पछी क््यो मुमुक्षु
कुदेवने नमे? साक्षात् वीतराग–मार्गरूप अमृत मळ्‌या पछी रागरूपी झेरनो आदर कोण
करे? हे जिननाथ! अत्यंत भक्ति अने आहलादपूर्वक अमारुं हृदय तारा चरणोमां
नम्युं छे. तारा पंथमां वळ्‌युं छे. ते हवे बीजा कोईने नहि नमशे...नहि नमशे.
जिनमार्गने पामीने अप्रतिहतपणे चिदानंदस्वरूप तरफ परिणति नमी. ते नमी.
हवे बहार नीकळीने बीजा कोईने ते नमवानी नथी.
[२०६]