Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २०७
बा...ल...वि...भा...ग
गया अंकना त्रण प्रश्नोना जवाब
(१) ‘आत्मसिद्धि’ नी १०८मी गाथाने घणी मळती आवे एवी ३८ मी गाथा छे; ते बंने गाथाओ नीचे
मुजब छे–
कषायनी उपशांतता मात्र मोक्ष अभिलाष, कषायनी उपशांतता मात्र मोक्ष अभिलाष,
भवे खेद अंतर दया, ते कहिये जिज्ञास. (१०८) भवे खेद प्राणी दया, त्यां आत्मार्थ निवास. (३८)
(र) मनःपर्ययज्ञान, सम्यग्दर्शन भेदज्ञान अने मुनिदशा–आ चार वस्तुओमांथी मनःपर्ययज्ञानमां बाकीनी
त्रणे वस्तुओ चोक्कस आवी जाय छे. केमके मनःपर्ययज्ञान मुनिदशामां ज थाय छे, ने मुनिदशा
सम्यग्दर्शन अने भेदज्ञानवाळा जीवने ज होय छे. आ रीते ज्यां मनःपर्ययज्ञान होय त्यां मुनिदशा,
सम्यग्दर्शन अने भेदज्ञान ए त्रणे वस्तुओ जरूर होय ज छे. मनःपर्ययज्ञान मुनिदशा वगर होतुं
नथी, ने मुनिदशा सम्यग्दर्शन के भेदज्ञान वगर होती नथी. घणा बाळकोए आ प्रश्नना जवाबमां
“मुनिदशा” लखेल छे, परंतु ते जवाब बराबर नथी केमके घणीवार मुनिदशा होवा छतां
मनःपर्ययज्ञान नथी होतुं. मनःपर्ययज्ञान कोईक ज मुनिओने होय छे. कांई बधाय मुनिओने नथी होतुं.
(३) त्रीजा प्रश्ननो जवाब छे–“अकलंक”:: श्री अकलंकस्वामी महावीर भगवान पछी लगभग १२०० वर्ष
बाद थई गया. तेमना नामनो बीजो अने चोथो अक्षर सरखा छे, पहेलो अने त्रीजो अक्षर सरखा
नथी; छेल्ला त्रण अक्षर ‘क लं क’ छे, सिद्धभगवानमां कलंक नथी अने छेल्ला बे अक्षर ‘लंक’ छे ते
लंकामां छे. बाळको, आ अकलंकस्वामीनी जीवनकथा तमने बहुज गमे तेवी छे. कोईवार आपणे
बालविभागमां ते आपशुं.
त्र...ण...प्र...श्नो
(१) बे भाई एवा..
के साथे साथे रमता,
साम सामे लड्या
ने अंते मोक्ष पाम्या...
–ए बे भाई कोण?
(र) नीचेनी वस्तुओमांथी जीवमां कई कई वस्तु
होय,ने अजीवमां कई कई वस्तु होय ते
जुदी पाडो–
राग, सुख, धर्म, वीतरागता,
दुःख, ज्ञान, अज्ञान, संसार.
(३) कोई जीव पासे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने
सम्यक् चारित्र एवा त्रण महान रत्नो छे;
हवे धारो के तेनी पासेथी पहेलुं रत्न
खोवाई जाय तो बाकी कयाकया रत्नो तेनी
पासे रहेशे?
(बाळको, आ वखते तमारा जवाबो वेलासर
मोकली आपशो, पुनम सुधीमां मोकली देशो.)
सरनामुं: आत्मधर्म–“बाल विभाग”
स्वाध्यायमंदिर–सोनगढ (सौराष्ट्र)
एनुं जीवन धन्य छे... एनां चरण वंद्य छे.
आकाश जेनुं छत्र छे...धरती एनुं सिंहासन छे.
गूफा जेनो महेल छे...वायु एनां वस्त्र छे.
समकित जेनो मुगट छे...चारित्र एनो हार छे.
ज्ञान जेनो रथ छे...अनुभव एनो ध्वज छे.
आनंद जेनो आहार छे...शांतरस एनुं पीणुं छे.
ध्यान जेनुं शस्त्र छे...वैराग्य एनुं बख्तर छे.
रत्नत्रय जेनुं धन छे...वन एनुं घर छे.
अनंतगुण जेनुं कुटुंब छे...कर्मना ए घातक छे.
धर्म जेनुं जीवन छे...चैतन्य एनुं ध्येय छे.
भवथी जे भयभीत छे...मोक्षना ए साधक छे.
एनुं जीवन धन्य छे एनां चरण वंद्य छे.