Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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पोष : र४८७ : १७ :
क््यो जीव मोक्षने साधे छे?
प्रश्न :– अज्ञानी जीवने धर्मनी श्रद्धा छे के नहीं?
उत्तर :– रागथी धर्म माननारो अज्ञानी जीव मोक्षना हेतुरूप धर्मने श्रद्धतो नथी; केमके शुद्धज्ञान–
चेतनामय आत्माने ते श्रद्धतो नथी; अने मोक्षना हेतुरूप धर्म तो शुद्धज्ञानचेतनामय आत्माना ज
आश्रये छे; तेथी शुद्धज्ञानमय आत्माना आश्रय वगर मोक्षना कारणरूप धर्मनी खरी श्रद्धा थती नथी.
प्रश्न :– तो अज्ञानी जीवनी श्रद्धा केवी छे?
उत्तर :– अज्ञानीजीव भोगना हेतुरूप रागने ज धर्म माने छे एटले ते भोगना हेतुरूप धर्मने ज श्रद्धे
छे. उपयोगने रागमां एकाकार करीने, जाणे के आ ज मने मोक्षनुं कारण थशे–एम अज्ञानी माने छे,
एटले ज्ञानमात्र भूतार्थधर्म (–के जे कर्मथी छूटवानुं निमित्त छे) तेने ते अज्ञानी श्रद्धतो नथी, पण
जे कर्मबंधनुं–अने संसारना भोगनी प्राप्तिनुं कारण छे एवा अभूतार्थधर्मने (–रागने) ज ते श्रद्धे
छे.–आ रीते मोक्षना कारणरूप भूतार्थधर्मनी श्रद्धाना अभावने लीधे अज्ञानीने साची श्रद्धानो
अभाव छे, एटले के तेनी श्रद्धा खोटी छे. जेम शुद्धज्ञानमय आत्माना ज्ञानना अभावने लीधे तेने
सम्यग्ज्ञाननो अभाव छे, तेम शुद्धज्ञानमय भूतार्थधर्मनी श्रद्धाना अभावने लीधे तेने सम्यक्श्रद्धानो
पण अभाव छे. अने ज्यां सम्यक् ज्ञान–श्रद्धान न होय त्यां सम्यक् चारित्र तो क््यांथी होय?–न ज
होय, एटले ते अज्ञानीने सम्यक् चारित्रनो पण अभाव छे.–आ रीते, जेओ शुद्धज्ञानमय निश्चयनो
आश्रय नथी करता ने व्यवहारनो ज आश्रय करे छे तेओने सम्यग्दर्शन–ज्ञान– चारित्ररूप
मोक्षमार्गनो अभाव छे, व्यवहारना आश्रये वर्तनार ते अज्ञानीओ बंधमार्गमां ज प्रवर्ते छे. जेओ
निश्चयनो आश्रय करे छे तेओ ज मोक्षमार्गने पामे छे.
आ रीते निश्चयनो आश्रय ते ज मोक्षमार्ग होवानो नियम बतावीने आचार्यदेव कहे छे के–
आम होवाथी मोक्षार्थी जीवोए निश्चयनयवडे व्यवहारनो निषेध करवो–ते योग्य ज छे.
प्रश्न :– मोक्षमार्गी–सम्यग्द्रष्टि केवो छे?
उत्तर :– सम्यग्द्रष्टि रागथी छूटो छे, पोताना उपयोगने ते रागथी छूटो ज राखे छे, रागमां एकमेक करतो नथी.
राग अने शुद्धात्मा–ए बंनेनुं भेदज्ञान करीने, शुद्धात्माना आश्रये ते सम्यग्द्रष्टि जीव मोक्षमार्गरूपे परिणमे छे.
प्रश्न :– बंधमार्गी–मिथ्याद्रष्टि केवो छे?
उत्तर :– जे बंधमार्गमां प्रवर्ती रह्यो छे एवा मिथ्याद्रष्टिनुं चित्त रागथी रंगायेलुं छे, ते पोताना
उपयोगने राग साथे एकमेक मानीने अनुभवे छे; रागनी अने उपयोगस्वरूप आत्मानी भिन्नताने
ते ओळखतो नथी; तेथी भेदज्ञानना अभावने लीधे, शुद्धात्मानो आश्रय नहि करतो थको अने
रागनो ज आश्रय करीने परिणमतो थको ते अज्ञानी जीव कर्मोथी बंधाय छे ने संसारमां रखडे छे.
प्रश्न :– अज्ञानीजीव मोक्षहेतुधर्मने नथी श्रद्धतो ने भोगहेतुधर्मने श्रद्धे ज छे–एम कया हेतुथी
आचार्यदेवे कह्युं छे?
उत्तर :– आ अध्यात्मग्रंथमां अनुभवप्रधान हेतु आपीने आचार्यदेव कहे छे के, ते अज्ञानीने
शुद्धात्माना अनुभवनो असद्भाव होवाथी एम नक्की थाय छे के ते जीव रागना ज अनुभवमां
अटकेलो छे एटले तेने भोगहेतुधर्मनुं ज (–रागनुं ज) सेवन छे, मोक्षहेतुधर्मनुं (–शुद्धात्माना
आश्रयनुं) सेवन नथी. जीवने कां तो शुद्धात्मानुं सेवन होय, अने कां तो रागनुं सेवन होय. तेमां
एकनो अभाव ते बीजानो सद्भाव सूचवे छे. जेने शुद्धात्मानुं सेवन (श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवन) नथी
तेने रागनुं सेवन जरूर छे. एकसाथे रागमां तेमज शुद्धात्मामां ए बंनेमां एकत्वबुद्धि रही शके नहि.
प्रश्न :– क््यो जीव मोक्षने साधे छे?
उत्तर :– शुद्धात्मामां एकत्वबुद्धि करीने तेनो ज जे आश्रय करे छे ते तो मोक्षने साधे छे, तेने रागमां
एकत्वबुद्धि रहेती नथी. अने जेने रागमां एकत्वबुद्धि छे ते रागना आश्रये बंधाय ज छे, तेने चैतन्यनो
आश्रय नहि होवाथी ते सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग पामतो नथी. आ रीते व्यवहारना पक्षनो आशय जीवने
संसार परिभ्रमण करावे छे...माटे आचार्यदेव करुणाथी कहे छे के हे मोक्षार्थीजीवो! संसारपरिभ्रमणथी
छूटवा माटे तमे व्यवहारना पक्षनी बुद्धि छोडो ने मोक्षने माटे शुद्धनयनुं अवलंबन करो.
(समयसार गा. र७प उपरना प्रवचनमांथी.)