Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक ३ जो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी पोष : २४८७
स्व स न्म ख थ
भाई, तारे तारुं हित करवुं छे ने?
हा, मारे मारुं हित करवुं छे.
तारुं हित करवुं छे ते तारामां थाय के बीजामां?
मारुं हित तो मारामां ज थाय, मारुं हित बीजामां केम थाय?
तो पोतामां जे हित करवानुं छे ते पोतानी सामे जोवाथी थाय
के बीजानी सामे जोवाथी?
पोतामां जे हितकार्य करवानुं छे ते तो पोतानी सामे जोवाथी ज थाय,
परनी सामे जोवाथी न थाय. परनी सामे जोवाथी तो पोतानुं
हितकार्य चूकी जवाय.
बस! तो पछी तारुं हित साधवा माटे तुं तारामां ज जो...परथी
तारुं भिन्नपणुं जाणीने स्वसन्मुख था...आ हितनो उपाय छे.
–रात्रिचर्चामांथी.
[२०७]