Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २०७
आत्मा अने बंधने जाुदा करीने मोक्षने साधनारी
भ ग व ती प्र ज्ञा
जेनां अंतरमां भेदज्ञाननी तालावेली थई छे–एवा मोक्षार्थी
शिष्ये पूछ्युं हतुं के प्रभो! प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे एम आपे
समजाव्युं, तो ते प्रज्ञावडे खरेखर कई रीते आत्मा अने बंधने
जुदा पाडी शकाय? तेना उत्तरमां आचार्यदेवे भेदज्ञाननी
अलौकिक वात (गाथा २९४मां) समजावी; आत्मानुं लक्षण ज्ञान,
अने बंधनुं लक्षण राग, ए बंनेने स्पष्टपणे जुदा ओळखाव्या.
(तेनुं प्रवचन गतांकमां आवी गयुं छे.) आ रीते, आत्मा अने
बंध बंनेने स्पष्टपणे अत्यंत जुदा पाडनारी भगवती प्रज्ञा ज
मोक्षनुं साधन छे. ए रीते भगवती प्रज्ञाने ज मोक्षना साधन
तरीके वर्णवीने हवे आचार्यदेव तेना उपर अलौकिक कळश चडावे
छे, तेमां तीक्ष्ण प्रज्ञाछीणी कई रीते आत्मा अने बंधने अत्यंत
जुदा करी नांखे छे तेना पुरुषार्थनुं अद्भुत वर्णन कर्युं छे.–
(स्रग्धरा)
प्रज्ञाछेत्री शितेयं कथमपि निपुणैः पातिता सावधानेः
सूक्ष्मेऽन्तःसंधिबंधे निपतति रभसात् आत्मकर्मोभयस्य ।
आत्मानं मग्नमंतःस्थिरविशदलसत् धाग्नि चैतन्यपूरे
बंधं चाज्ञानभावे नियमितमभितः कुर्वती भिन्नभिन्नौ ।। १८१।।