Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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पोष : २४८७ : :
भेदज्ञानना वर्णननो आ श्लोक घणो सरस छे, ते सौए मोढे करवा जेवो छे.
जुओ, आ भेदज्ञाननी रीत! प्रवीण पुरुषो एटले के विचिक्षण बुद्धिवाळा आत्मार्थी जीवो अत्यंत
सावधानीथी प्रज्ञाछीणीवडे आत्मा अने बंधने भिन्नभिन्न करी नांखे छे. पोताना सर्व प्रयत्नवडे, एटले के
आखा जगत तरफथी पाछो वळीने चैतन्य तरफ वळवाना उद्यमवडे, अत्यंत जागृतीपूर्वक, आत्मा अने
बंधनी संधिनी वच्चे प्रज्ञाछीणी पटकीने मुमुक्षु जीव तेमने जुदा पाडी नांखे छे.–बंनेने जुदा पाडवा माटे
बेनो आश्रय नथी, आश्रय तो एक आत्मानो ज छे; ‘प्रज्ञा’ ज्यां आत्मा तरफ वळीने एकाग्र थई त्यां
बंधथी ते जुदी पडी ज गई; ज्ञान–परिणति अने आत्मानी एकता थई तेमां राग न आव्यो,–तेमां बंधभाव
न आव्यो, ए रीते बंध जुदो ज रही गयो, ने आत्मा बंधनथी छूटी गयो. आ रीते भगवती प्रज्ञा बंधने
छेदीने आत्माने मुक्ति पमाडे छे.
धीमी शांत हलकवाळा आ श्लोकमां आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! बंधथी रहित एवा तारा चिदानंद
आत्माने अंतरमां अवलोकवा माटे तुं धीरो था...धीरो थईने एटले के रागनी आकुळताथी जराक जुदो
पडीने अंतरमां वळ. रागथी जुदो पडीने जे अंतरमां वळ्‌यो तेणे आत्मा अने बंध वच्चे प्रज्ञाछीणीने पटकी.
प्रवीण पुरुषो वडे सावधानीथी पटकवामां आवेली आ प्रज्ञाछीणी केवी रीते पडे छे?–शीघ्र पडे छे,–तत्क्षण ज
आत्मा अने बंधनुं भेदज्ञान करती पडे छे; जेवुं ज्ञान अंतरमां वळ्‌युं के तरत ज बंधने छेदीने आत्माथी जुदो
पाडी नांखे छे. जुओ, आ बंधने छेदवानी छीणी! आ प्रज्ञाछीणी ज मोक्षनुं साधन छे.
(१) एक तो, (प्रज्ञाछेत्री शितेयं) प्रज्ञाछीणी तीक्ष्ण छे,
(र) बीजुं, (कथमपि) कोई पण रीते, एटले के सर्व उद्यमने तेमां ज रोकीने ते पटकवामां आवे छे.
(३) त्रीजुं (निपुणैः) निपुण पुरुषो वडे–एटले के मोक्षना उद्यमी मोक्षार्थी पुरुषोवडे ते पटकवामां आवे छे.
(४) चोथुं (पातिता सावधाने) सावधान थईने एटले के मोहने दूर करीने, आत्मस्वरूपनी सन्मुख थईने
ते प्रज्ञाछीणी पटकवामां आवे छे.
(प) अने पांचमुं (निपतति रभसात्) ते प्रज्ञाछीणी शीघ्रपणे पडे छे.
आम पांच विशेषणोथी आचार्यदेवे भेदज्ञाननो अपूर्व पुरुषार्थ दर्शाव्यो छे, आवा पुरुषार्थथी
पटकवामां आवेली प्रज्ञाछीणी आत्मा अने बंधने सर्व तरफथी अत्यंत जुदा करी नांखे छे, बंधना एक
अंशने पण आत्मामां भेळवती नथी. आ रीते बंधने सर्व प्रकारे छेदीने आत्माने मोक्ष पमाडनारी आ
‘प्रज्ञा’ ने आचार्यदेवे ‘भगवती’ कहीने तेनो महिमा कर्यो छे.
पूर्वे र३मां कलशमां कह्युं हतुं के हे भव्य! तुं कोईपण रीते–मरीने पण तत्त्वनो कौतूहली था ने देहथी
भिन्न आत्मानो अनुभव कर. तेम अहीं पण कहे छे के हे मोक्षार्थी! तुं कोईपण रीते, आखा जगतनी दरकार
छोडी दईने पण, आ भगवती प्रज्ञाने अंतरमां पटकीने बंधने छेदी नांख! ‘कोईपण रीते’–एम कहीने कर्म
वगेरे नडशे–ए वात उडाडी दीधी. कोई कहे–कर्म नडे तो?–तो आचार्यदेव कहे छे के अरे जीव! तुं एकवार
प्रज्ञाछीणीने हाथमां तो ले...प्रज्ञाछीणी हाथमां लेतां ज (–एटले के ज्ञानने अंतर्मुख करतां ज) कर्म तो क््यांय
बहार रही जशे ने छेदाई जशे. अहीं तो कहे छे के ‘कर्म नडशे...’ एम याद करे ते खरो मोक्षार्थी नहि, खरो
मोक्षार्थी तो उद्यमपूर्वक प्रज्ञाछीणी वडे भेदज्ञान करीने आत्मा अने बंधने अत्यंत जुदा करी नांखे छे.