भेदज्ञाननो पुरुषार्थ कर्या वगर केम रहे?–ने आवो मोक्षार्थीजीव बंधना एक कणियाने पण पोताना
स्वरूपमां केम राखे?–न ज राखे. ने भेदज्ञानना कार्यमां ते प्रमाद पण केम करे?–न ज करे. जेम वीजळीना
झबकारे सोय परोववी होय त्यां प्रमाद केम पालवे? तेम अनंतकाळना संसारभ्रमणमां वीजळीना झबकारा
जेवो आ संसारभ्रमणमां वीजळीना झबकारा जेवो आ मनुष्यअवतार, तेमां चैतन्यमां भेदज्ञानरूपी दोरो
परोववा माटे आत्मानी घणी जागृती जोईए. भाई! अनंतकाळे आ चैतन्य भगवानने ओळखवाना ने
मोक्षने साधवाना टाणां आव्या छे, क्षण क्षण लाखेणी जाय छे, आत्मभान वगर उगरवानो कोई आरो
नथी; माटे सर्व उद्यमथी तारा आत्माने भेदज्ञानमां जोड...शूरवीरताथी प्रज्ञाछीणीवडे तारा आत्माना
बंधभावने छेदी नांख. प्रज्ञाछीणी ते बंधने छेदवानुं अमोघशस्त्र छे. प्रज्ञाछीणीने सावधान थईने पटकतां,
एटले के जगतनी अनुकूळतामां अटक्या वगर ने जगतनी प्रतिकूळताथी डर्या वगर ज्ञानने अंतरमां स्व
तरफ वाळतां बंधन बहार रही जाय छे एटले आत्मा बंधनथी छूटी जाय छे. आ रीते बंधनने छेदीने मोक्ष
पामवानुं साधन भगवती प्रज्ञा ज छे.
आराधवो, के जे आराधनाथी जीवने अपूर्व एवुं सम्यक्त्व उत्पन्न थाय छे.” (‘ज्ञानीना
मार्गना आशयने उपदेशनारां वाक््यो’ मांथी)