फागण : २४८७ : २३ :
गुरुदेवे अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे’ ए पद बोलीने वीतरागतानी
भावना भावी हती. त्यार बाद तेमणे सिद्धपदने पाम्या छे एवा वीतराग
भगवानना स्मरणनो हेतु समजावीने वीतरागी मोक्षमार्ग अने मोक्षपदनुं
टुंकामां स्वरूप अने माहात्म्य दर्शाव्युं हतुं. पछी पू. बहेनोए भक्ति करी
हती बाद गुरुदेव साथे जयनाद सहित भक्तिना पद गातां गातां पहेली टूंके
सौ पाछा आव्या त्यां श्वेताम्बर जैन पेढीना मुख्य मुनिम (ईन्सपेकटर
साहेब) नी खास विनंतीथी बपोरना गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं. त्यारबाद
ईन्सपेकटर श्री भानुभाईए गदगद थईने कह्युं के ‘आपना चरण समीप ज
मारो जन्म थाय ने मारूं जीवन सफळ बने एम कहीने प्रेम बताव्यो हतो.
विशेषमां पहाड उपर राजुलनी गुफाथी दक्षिण दिशामां आशरे ६००
डगला दूर चंद्रगुफा नामे सुंदर गुफा छे, तेमां बहु ज प्राचीन पगला छे (–
दिगम्बर जैन आम्नायानुसार चरण चिन्ह छे.) घणा भाईओ त्यां जई
बहु प्रसन्नता व्यकत करता हता)
बपोरे पू. गुरुदेव साथे भक्तो जयनादपूर्वक भक्तिना पद गातां
गातां परम हर्ष प्रगट करतां नीचे तळेटीनी धर्मशाळामां आव्या. त्यां रात्रे
जिनमंदिरमां भक्ति थई
ता. २९–१–६१ जूनागढ शहेरमां आव्या. पूज्य गुरुदेव साथेनी आ
अपूर्वयात्रा मोटा समूदाय सहित निर्विघ्ने पूर्ण थई तेथी सर्वेए प्रसन्नता
व्यकत करी हती.
यात्रानी सर्व प्रकारनी सुंदर व्यवस्थामां वांकानेर, मोरबी, मुंबई
अने सोनगढना मुमुक्षु मंडळनो मोटो फाळो हतो, तेमणे बजावेली सेवा
प्रशंसनीय हती, वळी जूनागढनी दिगम्बर तथा श्वेताम्बर जैन
पेढीवाळाओनो घणो साथ हतो. तेमणे यात्रा संघनी घणी सेवा करी छे.
तेमां जैन वीशाश्रीमाळी नुतन मित्र मंडळे पण घणी सुंदर सेवा आपी छे.
स्थानकवासी जैन संघ तरफथी पण मदद मळी छे. तेओने बधाने धन्यवाद.
बपोरे जूनागढ शहेरमां टाउन होलमां पूज्य गुरुदेवनुं जाहेर
व्याख्यान हतुं. श्रोता समूह मोटी संख्यामां हाजर रहीने बधा. जिनेन्द्र
रथयात्रा उत्सवमां जोडाया हता. महान यात्राना उत्सव निमित्ते शहेरमां
जिनेन्द्र रथयात्रानो वरघोडो काढवामां आव्यो हतो, समवसरण जेनी वेदीमां
श्रीजी (भगवान) ने बिराजमान करवामां आव्या हता. अहीं पण अजमेर
भजन मंडलीना सभ्योए अथक प्रेम उत्साह सहित भकितद्वारा पोतानो
भक्तिभर्यो कार्यक्रम रजू करी जिनेन्द्र रथयात्रामां भारे उत्साह प्रगट कर्यो
हतो. आ रीते धर्मप्रभावनाना प्रणेता पू. गुरुदेवना पुनित प्रतापे धर्म
प्रभावनामय आ अपूर्व यात्रा बधाने माटे आनंदमय हती अने ते
चिरस्मरणीय रहेशे.
ली. गुलाबचंद जैन