Atmadharma magazine - Ank 210
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : २१०
कुंडला शहेरमां असाधारण उमंगथी उजवायेलो
जिनबिंब वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव


प. पू. गुरुदेवना पुनितप्रभावे सावरकुंडला शहेरमां श्री शान्तिनाथ भगवाननुं भव्य दिगम्बर
जिनमंदिर तैयार थयुं, ने ते श्री जिनेन्द्र भगवंतोनी वेदी प्रतिष्ठानो महोत्सव फागण सुदी ९ थी १२ सुधी
खूब ज आनंद–उल्लासपूर्वक उजवायो, जिनमंदिर एवुं सुंदर बन्युं छे के जाणे जिनभक्तिना आनंद तरंग
उछाळवामां नित्य महोत्सव दर्शावी रह्युं छे. चार मास जेटला टूंका समयमां पंचावन हजारना खर्चथी ते
तैयार थयुं छे. तेमां पडखे दीवाल उपर ऊंचे मानस्तंभनुं सुंदर द्रश्य छे.
फा. सु. ९ थी प्रतिष्ठानी मंगळविधिनो प्रारंभ थयो प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रदेवने पधरावीने,
झंडारोपण अने वीस विहरमान तीर्थंकर भगवंतोनुं मंडल विधानपूर्वक पूजन थयुं. बीजे दिवसे मंडलविधान
पूर्ण थतां जिनेन्द्र महाभिषेक थयो. फा. सु. ११ ईन्द्रप्रतिष्ठा, नांदीविधान, पूजन, पू. गुरुदेवनुं प्रवचन पछी
जलयात्रा ईन्द्रप्रतिष्ठानुं सरघस अने बपोरे यागमंडळ विधान महापुजा तेमां पंचपरमेष्ठी, त्रण चोवीसीना
तीर्थंकरो, विदेहक्षेत्रमां वर्त्तमान बिराजता श्री वीस तीर्थंकरो वगेरेनुं पूजन थयुं. सांजे अति उल्हासपूर्वक
जिनमंदिरमां वेदी–कलश अने ध्वजशुद्धि, स्वस्तिक वगेरे विधि थई हती.
फा. सुद १२ ना मंगळदिने सवारमां घणा ज उल्लास अने भक्तिभावथी भरेला अति उमंगभर्या
वातावरणमां जिनमंदिरनी पवित्र वेदी उपर पू. श्री कहानगुरुदेवना सुहस्ते श्री जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा थई.
बपोरे शान्तियज्ञ तथा प्रवचन बाद श्री जिनेन्द्र भगवाननी भव्य रथयात्रा घणा उल्लासपूर्वक
शहेरमां फेरवी हती. आ माटे खास जूनागढथी समवसरणनी मध्यमां रहे एवी गंधकूटी लाव्या हता.
पू. गुरुदेवनी मंगळ छायामां कुंडलानगरीमां उजवायेला आ प्रतिष्ठा महोत्सवमां घणी संख्यामां
महेमानो आवेला हता. स्वधर्मी बंधुओ प्रत्ये शेठश्री जगजीवनभाई, अनुपचंदभाई, श्री जयंतिभाई श्री
नरभेरामभाई वकील वगेरेनो असाधारण प्रेम अने पू. गुरुदेव प्रत्येनी भक्ति विशेषपणे याद रहे एवा
हता. सावरकुंडला दि. जैन संघे जे भक्ति अने उल्लासथी आ उत्सव उजव्यो छे ते अति प्रशंसनीय छे.
अष्टान्हिकाना दिवसो फा. सुद ८ थी १प दिवस दरमियान नंदीश्वर मंडल करीने पूजन थतुं हतुं.
कुंडलामां गुरुदेव ११ दिवस रह्या तेमां मुख्य कार्यक्रममां सवारे समयसारजीशास्त्र कर्ताकर्म अधिकार उपर
तथा बपोरे पद्मनंदी ऋषभजिन स्तोत्र उपर सुंदर प्रवचनो चालतां ने घणी मोटी संख्यामां जिज्ञासुओ
तेनो लाभ लेता, आसपासना गामडाना जिज्ञासुभाईओ पू. गुरुदेवना उपदेश उपरथी जैनधर्म प्रत्ये प्रेम
थयानुं जाहेर करता हता. पू. गुरुदेवना प्रतापे कुंडला शहेरमां सुंदर धर्म प्रभावना थई. त्यांथी दामनगर ता.
४–३–६१ ना पधार्या त्यां शेठ मुळजीभाई वगेरे द्वारा भव्य स्वागत थयुं पछी मंगल प्रवचन तथा बपोरे
विशाळ सभामां जाहेर प्रवचन हतुं.
ता. प–३–६१ ना रोज सवारे सोनगढ पधार्या. स्वागतमां बहारगामथी पण घणा भाईओ हाजर
रह्या हता. अत्यारे व्याख्यानमां सवारे प्रवचनसार गा. १७र विस्तारथी वंचाई गई तथा अत्यारे १६० मी
गाथा चाले छे. बपोरना समयसारजी परिशिष्ठ अधिकार चाले छे.
सोनासण (गुजरात) अने तेनी आसपासना २प० जैन भाईओ बहेनो जुनागढ तथा सोनगढ
माटे खास यात्रार्थे आवेला, तेओ पूज्य गुरुदेवना व्याख्याननो खास लाभ लेवा त्रण दिवस रोकाया हता.