Atmadharma magazine - Ank 210
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८७ : २प :
थाय छे–जे पत्नि हती ते बीजा भवमां माता थाय छे अरे. तेज भवमां पत्नि साथे भोग लेतां मरण पामी
तेना गर्भमां पुत्र रूपे आवी जन्म धारण करे छे. अल्पकाळना जीवन माटे अनेक प्रकारना कलेश, छळ
(कपट) करे छे अने पशु योनिमां घोर कलेश भोगवे छे–धिक्कार छे संसारने.
१प. आत्मज्ञान पूर्वक–वैराग्यनी वृद्धि अर्थे अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व अशुचि
आस्रव संवर, निर्जरा, लोक, बोधि दुर्लभ अने धर्म भावना ए बार भावना धर्मी जीवने होय छे तीर्थंकरो
पण ए भावना–भावता हता. ए भावनामां शुभ विकल्प (राग) होय छे ते धर्म नथी पण साथे
स्वसन्मुखताथी जेटली शुद्धदशा वर्ते छे तेटलो धर्म छे आम जाणी–संसार–शरीर–भोगथी; अने सर्व आस्रवोथी
भेदज्ञान करी अंतर्मुख थई ठरवुं अने ए ज करवा जेवुं छे एवी श्रद्धा करवी–जीवे ते करवा जेवुं छे.
[अंतरंग निस्तरंग चैतन्य तरंगमां अभंग छलंगमारनार वैराग्य मूर्ति श्री सद्गुरुदेवनो जय हो
(श्री खीमचंदभाई प्रेरीत जयकार) ]
ईष्ट उपदेश
ईष्ट उपदेश एटले आत्माने हितकर थाय, निज
शुद्धात्मानी द्रष्टि, तेनुं ज्ञान अने आनंद मळे एवो उपदेश.
राग द्वेष–पुण्य–पाप अने बंधननुं लक्ष छोडी एनी रुचि छोडी
नित्य ज्ञायक स्वभाव सन्मुख थाय तो धर्म (सुख) नी
शरूआत (–मोक्षमार्ग) अने मोक्ष दशा प्रगट थई शके छे ते
ईष्ट उपदेश छे.
(पू. गुरुदेव)