Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८७ : : २७ :
पण दीकरीनुं सगपण नक्की कर्युं, फलाणो मूरतियो छे. रूा. २००) पगार छे, ने १० हजारनी पूंजी छे. एवी
सगाईनी वात काने पडी के तुरत ज दीकरीनी द्रष्टि पलटी, के आ घर अने मूडी छे ते मारां नहि, मारुं तो ए
घर ने ए वर, तेम भेद पाडतां जीवने वार लागती नथी. तेम प्रथम अतीन्द्रिय ज्ञानस्वरूप आत्मा ते हुं छुं
एम ओळखाण करतां देहादि अने पुण्य–पाप विकार ते हुं नहि, एवुं भान थई जाय छे. ने ते ज समये द्रष्टि
फरी जाय छे.
“द्रव्यद्रष्टि ते सम्यग्द्रष्टि”–एम लखाण वांचीने, एक भाईए पूछयुं के: महाराज! द्रव्य–पैसावाळा ते
सम्यग्द्रष्टि हशे? तेने जवाबमां कह्युं के:–सर्वज्ञ वीतराग परमेश्वर कोण, तेमणे कहेला जीवादि छ द्रव्य शुं ते
तमे जाण्युं नथी; जीव, पुद्गल. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश अने काळ ते छ द्रव्यो छे पोताना
गुणोना समूहरूपे नित्य टकीने नवी नवी अवस्थारूपे दरेक समये दरेक द्रव्य बदल्या करे छे. तेमां जीवद्रव्य
संख्याए अनंतानंत छे. पुण्य–पाप आस्रव छे, ते अनात्मा छे. तेनाथी रहित त्रिकाळी चिदानंद आत्मद्रव्य छे
ते ज मारुं स्वरूप छे एवी द्रष्टि करवी ते ‘द्रव्यद्रष्टि’ छे. दान–पुण्यादि बाह्य क्रियाथी धर्म माने–मनावे, के
बीजाथी भलुं–भूंडुं थवुं बतावे ते वात ज्ञानी जराय माने नहि. सर्वभेद, विकार अने संयोगोथी भिन्न हुं
त्रिकाळ निर्विकारी ज्ञायक स्वभावी छुं एवी आत्मद्रष्टि थवी ते ‘द्रव्यद्रष्टि’ छे. एवी अंतरद्रष्टि जे करे तेने
चोरासीना अवतार टळ्‌या विना रहे नहि.
समाचार
प. पूज्य गुरुदेव सुखशान्तिमा बिराजे छे. सवारना प्रवचनमां
प्रवचनसार गा. १९० तथा बपोरना प्रवचनमां समयसार परिशिष्टमां कळश
नं. २६८–६९ चाले छे, समयसार शास्त्र पूर्ण थया पछी भगवान
कुन्दकुन्दाचार्यकृत अष्टपाहुडशास्त्र प्रवचनमां लेवामां आवशे.
चैत्रसुदी १० धर्मवैभवस्तंभ–मानस्तंभमां जिनेन्द्र भगवाननी
प्रतिष्ठानो वार्षिक महोत्सव तथा चैत्र सुदी १३ श्री महावीर प्रभुनो
२पप९मो जन्मकल्याणक महोत्सव आनंदथी उजवायो हतो.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
बीलखाना वतनी श्री नागरदास शामळजी तथा तेमना धर्मपत्नि श्री
रेवाकुंवरबहेने पू. गुरुदेव समक्ष सोनगढमां आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
अंगीकार करी ते बदल धन्यवाद.
सूचना : –
जैनदर्शन शिक्षणवर्गमां पाठ्यपुस्तको नीचे मुजब चालशे.
उत्तम वर्गमां–जैनतत्त्वमीमांसा, जैन सिद्धांत प्रश्नोतर–माळा भाग–३
मध्यम वर्गमां–द्रव्यसंग्रह नवी टीका, लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका प्रथम वर्गमां–
छ ढाळा, जैनसिद्धांत प्रवेशिका.