प्रीतिपूर्वक भावना कर्या ज करे छे. आत्म कल्याणमां वर्तता जीवने स्वप्नामां–जागतामां–विकल्प वाणी अने
भावनामां सहजपणे एवुं घोलन चालतुं ज होय छे.
होय नहि. जेम नाळियेर छे तेमां चार वात छे:–
काचली जडकर्म समान अने राग–द्वेष–मोह ते रातड समान मेल छे. पण ए त्रणेयथी रहित नित्य अतीन्द्रिय
ज्ञानआनंद स्वभावी आत्मा छे. तेनी अभेद प्रतीतिरूप अनुभवदशा ते आत्मानो धर्म छे.
माहात्म्य दे छे. कोई कहे छे के अमुक जीव सेवा, भक्ति, दान बहु करे छे पण ए तो रागमां रोकावानी वात
छे. सेवा, भक्ति, दानादिनाभाव ज्ञानीने पण होय छतां श्रद्धामां तेनो आदर न होय, माटे प्रथम साची श्रद्धा
करवी जोईए. शास्त्रो नवपूर्व सुधी भण्यो होय, त्यागमां महाव्रत चोकखां पाळतो होय तेथी शुं? ते
आत्मज्ञाननुं लक्षण नथी. रागादि मारुं कर्तव्य नथी, मारो त्रिकाळी ज्ञानानंद स्वभाव छे, मारी शान्ति–
शुद्धता मारामां छे एनी रुचिमां जे ऊभो छे तेने आत्मा कहीए.
ज धर्म थाय, त्रणेकाळे हितनो उपाय आ एक ज छे. आ सत्य नियम न माने त्यां सुधी अनादिनुं दुःख न
जाय.
अथवा केफी नशामां बेभान थई सुख माने तेना जेवुं छे. तेओ बेभान होवाथी सुखनी खोटी कल्पना करी
हर्ष माने छे.
पापमय छे. दुःखदाता ज छे ते मारुं स्वरूप नथी; एवा निर्णय वडे, स्वसन्मुख थतां ज अनादिनो विभाव
भावरूप आस्रव टळी जाय छे; क्षणिक विकार हुं नथी, तो त्रिकाळ ज्ञातास्वभावी छुं. एम भेदज्ञान थतां ज
आस्रवो अनादि प्रवाहथी होवा छतां अटकी जाय छे.
वळी ते साथे तेना आवरणरूप जे निमित्त हतुं ते तुरत ज टळी जाय छे. जेम झाडनुं मूळ कपायुं त्यां पांदडां
थोडा ज काळमां सूकाये छूटको. तेम आत्मद्रष्टि थतां भ्रम दूर थाय छे ने अनादिनुं अज्ञान अटकी जाय छे ए
रीते संसारनुं मूळ कपायुं त्यां थोडा ज काळमां संसार सूकाये अने मोक्ष थये छूटको.