छे, बहारथी आवे तेम नथी.
आश्रये ते आवे छे. निमित्ताधीन द्रष्टिवाळा जीव संयोग अने विकार (शुभ–अशुभ राग) ने ज भाळे छे,
तेनो आदर करे छे. पण सहज ज्ञानानंद शक्ति पोतानी पासे छे, ते पोताने आधीन छे, तेनी किंमत अने
महिमा तेमने आवतां नथी.
एम वाणियाए ठराव कर्यो. भाट रोज जमण मागवा आवे पण काल कदी आवे नहि अने भाट जमे नहीं.
तेम अत्यारे परमसत्य समजवाना टाणां मळ्यां छतां वायदो करे, तेने फरी अनंतकाळे मनुष्य भवनां आ
टाणां मळवां दुर्लभ छे. अत्यारे जे साचुं समजवानी ना पाडे छे ते शुभभाव करे तो पण तेना फळ तरीके
तीर्थंकर पासे जवानो नथी ने कदाच जाय तो त्यां पण विरोधद्रष्टि चालु होवाथी ना पाडशे.
एवो रिवाज होय छे. ते प्रमाणे ते चांदलो करवा आवी. तेने रूपवान जोईने राजानी द्रष्टिमां काम वासनानुं
झेर चड्युं. भावमां फेर पड्यो–चांदलो करवा देतो नथी मोढुं फेरवे छे, बाई समजी जाय छे. ते वृद्ध माताने
कहे छे के आईमा ‘रा’ फरे छे. माता कहे छे के ‘रा’ नथी फरतो पण ‘रा’ नो ‘दि’ फर्यो छे, ते राज्यने
लायक नहि रहे. तेम आचार्य भगवान तने भगवान थवानी वात समजावे छे. पुण्य–पाप, कामक्रोधादिभाव
पराश्रय करवाथी थाय छे, तेनी द्रष्टि छोड केमके ते तारुंपद (तारुं स्वरूप) नथी अने सत्चिदानंद
निजस्वरूप छे तेनी हा पाड, तेनुं भान करी तेमां एकताबुद्धि करी तेमां जाग्रत था, तेनो ज आदर कर. छतां
जे मोढुं फेरवे छे, आत्महितमां वायदो करे छे, बानां बतावे छे, संयोगनो दोष बतावे छे. तेओने
आत्महितनी अरुचि छे. भाई! हमणां नहि तो क््यारे समजीश? क्षणमां आंखो मिचाई जशे; चोरासी
लाखना ऊंडा कूवामां ऊतर्या पछी फरी अवसर क््यांय नहि मळे.
छोडे. मालिक छोडवा आवे छे तेने भाळीने छूटवानी होशमां ऊछळे छे. आनंद प्रगट करी थनगनाट करे छे
के हमणां छूटा थई जशुं. तेम अनंतकाळथी पुण्य–पापना बंधननी ममताथी बंधाणो छे. एनाथी रहित
थवानी आ वात करीए छीए. जो होंश अने अपूर्व उल्लास न आवे तो समज के वाछडा जेटली पण बुद्धि नथी.
(आचार्य कहे छे के) पाडा–वाछडामांथी पण जा एवो छे.
होय तो नम्रता सहित वारंवार सांभळवानो प्रेम आवे,