Atmadharma magazine - Ank 211
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८७ : २प :
आत्माना सामान्य (ध्रुव) स्वभावमां निर्दोषता पडी छे तेनी द्रष्टि करी एकाग्र थये, अंदरमांथी ते आवे तेम
छे, बहारथी आवे तेम नथी.
जळमां सेवाळनी जेम पुण्य–पाप मेल छे. सदोषता अने निर्दोषता बंने अवस्था छे. निर्दोषता एटले
धर्म–सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप निर्विकारी आत्मदशा. ते क्यांथी आवे? नित्य ध्रुवस्वरूप आत्माना
आश्रये ते आवे छे. निमित्ताधीन द्रष्टिवाळा जीव संयोग अने विकार (शुभ–अशुभ राग) ने ज भाळे छे,
तेनो आदर करे छे. पण सहज ज्ञानानंद शक्ति पोतानी पासे छे, ते पोताने आधीन छे, तेनी किंमत अने
महिमा तेमने आवतां नथी.
झीणी वात समजाय नहि ए मान्यता पण क्षणिक छे तेथी ते पलटी शकाय छे. माटे ज्ञानीओ कहे छे
के:– समजाय नहि एम न बोल. कहेवत छे के “वाणिया जमे (भोजन करे) आज अने भाट जमे काल”
एम वाणियाए ठराव कर्यो. भाट रोज जमण मागवा आवे पण काल कदी आवे नहि अने भाट जमे नहीं.
तेम अत्यारे परमसत्य समजवाना टाणां मळ्‌यां छतां वायदो करे, तेने फरी अनंतकाळे मनुष्य भवनां आ
टाणां मळवां दुर्लभ छे. अत्यारे जे साचुं समजवानी ना पाडे छे ते शुभभाव करे तो पण तेना फळ तरीके
तीर्थंकर पासे जवानो नथी ने कदाच जाय तो त्यां पण विरोधद्रष्टि चालु होवाथी ना पाडशे.
सत्य श्रवण कदी काने पडे पण ते रुचे नहि, तत्त्वनो महिमा आवे नहि तेने आ महान अवसर एळे
जाय छे. एक चारणबाई सती–देवी जेवी हती. राजा राजगादी पर बेसे छे त्यारे ते चांदलो करवा आवे
एवो रिवाज होय छे. ते प्रमाणे ते चांदलो करवा आवी. तेने रूपवान जोईने राजानी द्रष्टिमां काम वासनानुं
झेर चड्युं. भावमां फेर पड्यो–चांदलो करवा देतो नथी मोढुं फेरवे छे, बाई समजी जाय छे. ते वृद्ध माताने
कहे छे के आईमा ‘रा’ फरे छे. माता कहे छे के ‘रा’ नथी फरतो पण ‘रा’ नो ‘दि’ फर्यो छे, ते राज्यने
लायक नहि रहे. तेम आचार्य भगवान तने भगवान थवानी वात समजावे छे. पुण्य–पाप, कामक्रोधादिभाव
पराश्रय करवाथी थाय छे, तेनी द्रष्टि छोड केमके ते तारुंपद (तारुं स्वरूप) नथी अने सत्चिदानंद
निजस्वरूप छे तेनी हा पाड, तेनुं भान करी तेमां एकताबुद्धि करी तेमां जाग्रत था, तेनो ज आदर कर. छतां
जे मोढुं फेरवे छे, आत्महितमां वायदो करे छे, बानां बतावे छे, संयोगनो दोष बतावे छे. तेओने
आत्महितनी अरुचि छे. भाई! हमणां नहि तो क््यारे समजीश? क्षणमां आंखो मिचाई जशे; चोरासी
लाखना ऊंडा कूवामां ऊतर्या पछी फरी अवसर क््यांय नहि मळे.
दुःखथी मुक्त थवानी जे वात आवे ते सांभळी जीवने अपूर्व उत्साह आववो जोईए. परमात्म
प्रकाश ग्रंथमां आचार्य कहे छे के, जेम वाछडाने आखो दिवस बंधनमां बांध्या होय, पाणी पावानां टाणां थये
छोडे. मालिक छोडवा आवे छे तेने भाळीने छूटवानी होशमां ऊछळे छे. आनंद प्रगट करी थनगनाट करे छे
के हमणां छूटा थई जशुं. तेम अनंतकाळथी पुण्य–पापना बंधननी ममताथी बंधाणो छे. एनाथी रहित
थवानी आ वात करीए छीए. जो होंश अने अपूर्व उल्लास न आवे तो समज के वाछडा जेटली पण बुद्धि नथी.
अनंतवार सर्व प्रकारनां दुःख सह्यां छे, भूंड, कागडा, कूतराना भवो कर्यां छे. संयोग–वियोग के
जन्म–मरण ते दुःख नथी पण मोहभाव ते दुःख छे. तेनाथी छूटवानी वातमां अपूर्व प्रेम–उत्साह न आवे तो
(आचार्य कहे छे के) पाडा–वाछडामांथी पण जा एवो छे.
हमणां आ नहि; हजु अमारे पुण्य करवां छे. तेनी रुचिमां जीव अनादिथी बंधायो छे. पुण्यनी
रुचिवाळो तेमां धर्म माने छे अने पापमां सुख माने छे. एने एना दोषनी खबर नथी जो सत्यनी जिज्ञासा
होय तो नम्रता सहित वारंवार सांभळवानो प्रेम आवे,