Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक ८ मो संपादक : भानुभाई मुळजीभाई लाखाणी जेठ : २४७८
भगवान् श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव
जासके मुखारविंदतें प्रकाशभासवृंद,
स्याद्वाद जैनवैन ईन्दु कुन्दकुन्दसे;
तासके अभ्यासतें विकास भेदज्ञान होत,
मूढ सो लखे नहि कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे;
देत है अशीस शीस नाय ईन्द चंद जाहि,
मोह–मार–खंड मारतंड कुन्दकुन्दसे;
विशुद्धि–बुप्रद्धि–वृद्धिका प्रसिद्ध ऋद्धि–सिद्धिदा,
हुए न, हैं न, होंहिंगे मुनिंद कुन्दकुन्दसे.
* सूर्य
(कविवर वृंदावनदासजी)
भावार्थ–पाछळ टाईटल पृ. नं. २ मां देखो.
[२१२]