स्याद्वाद जैनवैन ईन्दु कुन्दकुन्दसे;
तासके अभ्यासतें विकास भेदज्ञान होत,
मूढ सो लखे नहि कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे;
देत है अशीस शीस नाय ईन्द चंद जाहि,
मोह–मार–खंड मारतंड कुन्दकुन्दसे;
विशुद्धि–बुप्रद्धि–वृद्धिका प्रसिद्ध ऋद्धि–सिद्धिदा,
हुए न, हैं न, होंहिंगे मुनिंद कुन्दकुन्दसे.