: २ : आत्मधर्म : २१२ :
– : आचार्यदेवनी स्तुतिनो भावार्थ : –
चंद्रसमान कुन्दकुन्दाचार्यना मुखकमळथी तेजपुंज अने
स्याद्वादमय जिनेश्वरनी वाणीनो प्रकाश थयो. तेना अभ्यासथी
भेदज्ञाननो विकास थाय छे. मूढजीव आ जिनवाणीना आशयने
जाणता नथी एवा कुबुद्धि छे.
चंद्रलोक आदिना स्वामीओने ईन्द्र कहेवाय छे. तेओ आपने
मस्तक नमावीने आशिष दे छे. केवा छे श्री कुन्दकुन्दाचार्य? के मोह
अने काम वासनानो नाश करवामां सूर्य छे. विशुद्धि अने बुद्धिनी
वृद्धि तथा प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिना दाता एवा श्री कुन्दकुन्दाचार्य समान
आचार्य तेमना पछी थया नथी, छे नहीं अने आ अवसर्पिणीकाळमां
थशे नहि.
भूल सुधारो :– प्रणम जेठ मासना विशेष अंकमां सळंग नं. २१३
भूलथी छपायुं छे तेने बदले ए. २१२ सुधारी लेवुं अने अंक ९ मो ए पण
भूलथी छपायुं छे त्यां विशेषांक एम सुधारी लेवुं.
समाचार
प. पूज्य गुरुदेव श्री सुखशातामां बिराजे छे. सवारे प्रवचनमां श्री
प्रवचनसारजी शास्त्रमांथी ४७ नयोनो अधिकार तथा बपोरे अष्टपाहुडमां
बोधपाहुड नामनो चोथो अधिकार वंचाय छे.
जेठ सुद पांचम–श्रुतपंचमीनो उत्सव ऊजववामां आव्यो हतो, तेमां
श्री षट् खंडागम तथा कषायपाहुडशास्त्र (धवलाटीका, महाबंध अने
जयधवलटीका) सरस रीते समजावीने जिनमंदिरमां वेदी उपर बिराजमान
करी. तेमनी पूजा ठाठमाठथी करवामां आवी हती. त्यारबाद स्वाध्याय
मंदिरमां फरीवार खास ज्ञानपूजा अने जिनवाणी मातानी भक्ति करवामां
आवी हती.
(आत्मधर्म नियमित आखर तारीखे ज प्रगट थाय छे.)