Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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द्वि. जेठ : २४८७ : :
वर्ष अढारमुं : अंंक ८ मो संपादक : भानुभाई मुळजीभाई लाखाणी २ जो जेठ : २४८७
जगत उद्धरण अनभव
स्वसंवेदन स्थिरताथी उपजेलो रसास्वाद–स्वानुभव ते अनंत सुखनुं
मूळ छे. ए अनुभव धाराप्रवाहरूप जागतां दुःखदावानळ रंच पण रहेतो
नथी. भववासघटा नाश करवाने स्वानुभव परम प्रचंडपवन समान छे एम
मुनिजनो कहे छे. अनुभव सुधानुं पान करी अनेक भव्य अमर थया;
परमपूज्यपदने अनुभव ज (प्रगट) करे छे; ए विना सर्व वेद पुराण
निरर्थक छे, स्मृति विस्मृति छे, शास्त्रार्थ व्यर्थ छे (तथा) पूजा मोहभजन छे,
अनुभव विना निर्विघ्न कार्य विघ्न छे, परमेश्वर कथा ते पण जूठी छे, तप पण
जूठ छे तथा तीर्थ सेवन पण जूठ छे–तर्क, पुराण, व्याकरण खेद छे; अनुभव
विना गाममां गाय–श्वान अने वनमां हरणादिनी माफक अज्ञान तपसी छे;
अनुभव प्रसादथी माणस गमे त्यां रहो–सदा पूज्य छे. अनुभव आनंद,
अनुभव धर्म, अनुभव परमपद, अनुभव अनंतगुणरससागर, अनुभवथी
सिद्ध थाय छे. अनुपज्योति अमित तेज, अखंड, अचल, अमल, अतुल,
अबाधित, अरूप, अजर, अमर, अविनाशी, अलख, अछेद, अभेद, अक्रिय.
अमूर्तिक, अकर्तृंत्व, अभोक्तृत्व, अविगत, आनंद मय अने चिदानंद ईत्यादि
अनंत परमेश्वरनां सर्व विशेषणो अनुभव सिद्धिथी करे छे, माटे अनुभव
सार छे. मोक्षनुं निदान, सर्व विधाननो शिरोमणि, सुखनुं निधान, अम्लान
अनुभव छे. अनुभवी जीव–मुनिजननां चरणारविंद ईन्द्रादिक सेवे छे माटे
दरेक सद्ग्रन्थोमां अनुभवथी अनुभवनी प्रशंसा कही छे. अनुभव विना
साध्यसिद्धि कांई नथी. नंतचेतनाचिन्हरूप, अनंतगुणमंडित, अनंतशक्ति–
धारक, आत्मपदना रसास्वादने अनुभव कहीए (छीए).
वारंवार सर्व ग्रंथनो सार अविकार अनुभव छे, अनुभव शाश्वत
चिंतामणि छे, अनुभव अविनाशी रसकूप छे, मोक्षरूप अनुभव छे,
तत्त्वार्थसार अनुभव छे अने जगत उद्धारण अनुभव छे; अनुभवथी अन्य
कोई उच्चपद नथी माटे सदाय स्वरूपनो अनुभव करो. अनुभवनो महिमा
अनंत छे ते क्यां सुधी बतावीए?
(अनुभव प्रकाश–दीपचंदजी साधर्मी) पृ. ६४.