Atmadharma magazine - Ank 212
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २१२
निश्चय – व्यवहार मीमांसा
(मूळ पुस्तक पृ. २१प, आठमी लीटीथी अनुवाद चालु)
६र. अहीं एम समजवुं जोईए के व्यवहार अने निश्चय आ प्रकारे जे ए बे नयो छे तेमांथी अहीं
व्यवहारनय तो कर्मसंयुक्त अवस्था सहित जीवनो स्वीकार करे छे अने निश्चयनय जीवने कर्मसंयुक्त होवा
छतां पण कर्मसंयुक्त अवस्था न जोतां मात्र ध्रुवस्वभावी परमपारिणामिकभावरूप एक जीवनो स्वीकार करे
छे, केमके एवो नियम छे के प्रत्येकनय अंशग्राही ज होय छे माटे तेओ एक एक अंशने ग्रहण करे छे.
निश्चयनय तो केवळ सामान्यअंशने ग्रहण करे छे अने व्यवहारनय केवळ विशेषअंशने ग्रहण करे छे. साथे
ज एक नियम आ पण छे के दरेक द्रव्यनो जे परम पारिमाणिकभावरूप सामान्य अंश छे ते सदा अविकारी
होय छे, एक होय छे अने द्रव्यनी सर्व अवस्थाओमां व्याप्त थई (फेलाई) ने रहे छे तेथी नित्य तथा
व्यापक होय छे. परंतु जे विशेष अंश होय छे ते. कारण के कर्मादिकनी साथे सम्बन्ध करे छे माटे ते विकारी
हो्य छे, क्षण क्षणमां अन्य अन्य होवाथी अनेकरूप होय छे अने एक क्षण स्थायी होवाथी अनित्य तथा
व्याप्य (फेलावा योग्य) होय छे. आम ए बन्ने नय एक द्रव्यना ए बे अंशोनो स्वीकार करे छे.
६३. हवे आ प्रकरणमां विचार ए करवो छे के कर्मसंयुक्त आ जीव पोतानी कर्मना संयोगथी रहित
अवस्थाने केवी रीते प्रगट करे. निरन्तर जो ते कर्म सं्युक्त अवस्थानो ज अनुभव करतो रहे अने तेनो ज
आश्रय लीधा करे तो ते त्रिकाळमां कर्मरहित अवस्थाने प्रगट करी शके नहि, केमके जे जेनो आश्रय लेतो रहे
छे तेनाथी ते ज अवस्था प्रगट थाय छे. ए ज कारण छे के आचार्योए कर्मसंयुक्त अवस्थाने मटाडवा माटे
निश्चयरूप एक ध्रुवस्वभावी ज्ञायकभावनो आश्रय लेवानो उपदेश आप्यो छे. आ जीव ए बन्ने नयो द्वारा
जाणे छे तो पोताना ए बंने अंशोने ज. तेथी ज्ञान करवा माटे निश्चयनय समान व्यवहारनय पण
प्रयोजनवान् छे. पण मोक्षार्थी आश्रय एक मात्र निश्चयनयनो ले छे, केमके तेनो आश्रय लीधा विना
संसारी जीवनुं बंधनथी मुक्त थवुं संभव नथी.
६४. जाणवामां अने जाणीने आश्रय लेवामां महान अंतर छे. व्यवहारनय जाणवा योग्य छे अने
निश्चयनय जाणीने आश्रय लेवा योग्य छे–आ उक्त कथननुं तात्पर्य छे. माटे मोक्षमार्गमां व्यवहारनयने
प्रतिषिद्ध केम कह्यो अने निश्चयनयने प्रतिषेधक केम मान्यो तेनुं स्पष्टीकरण थई जाय छे.
६प. अहीं कोई प्रश्न करे छे के मोक्षमार्गमां निश्चयनयद्वारा जो व्यवहारनय सर्वथा प्रतिषिद्ध (–निषेध
योग्य) छे तो साधकने व्यवहारधर्मनी प्रवृत्ति केम बनी शकशे अने तेने व्यवहारधर्मनी