Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक विशेषांक संपादक : भानुभाई मुळजीभाई लाखाणी प्रथम जेठ : २४८७
निरन्तर स्मरणमां राखजे
दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी वृद्धि हेतु हे मुनि!
दीक्षा प्रसंगनी तीव्र विरक्त दशाने, कोई
रोगोत्पत्ति प्रसंगनी उग्र वैराग्यदशाने, कोई दुःख
प्रसंग पर प्रगट थयेली उदासीनतानी भावनाने,
कोई सत् उपदेशना धन्य अवसरे जागेली पवित्र
अंर्त–भावनाने स्मरणमां राखजे. निरन्तर
स्मरणमां राखजे, भूलीश नहि.
(श्री कुन्दकुन्दाचार्य भावपाहुड)
[वशष अक: अ. २१३]