सिद्ध न थवा विषे श्री बाहुबलीनुं उदाहरण छे. गा. ४प मां कहे छे के :–
आव्यो हतो. हवे ते राजकुमारी तथा तेनी माता वगेरेनी ईच्छा रूप अने गुणनिधान एवा
मधुपिंगलने पसंद करवानी हती पण सगरने राजी करवा माटे सगरना मंत्री कपट करीने
मधुपिंगलने राजकन्या न वरे ते माटे कल्पित सामुद्रिक शास्त्र नवुं बनावी मधुपिंगलने दोष लगाड्यो
के आनां नेत्र पिंगल (मांजरा) छे, जे कन्या आने वरे ते मरण पामे. त्यारे राजकन्याए सगरना
गळामां वरमाळा नाखी, मधुपिंगलने वरी नहीं तेथी मधुपिंगळे विरक्त थई दिक्षा लीधी. पछी मास
मासना उपवासना पारणे नगरमां आवतां सांभळवामां आव्युं के आ राजकुमार तो सर्वांग निर्दोष
ज छे एम सामुद्रिक शास्त्रमां आवे छे पण सगरना मंत्रीए कपटथी खोटुं शास्त्र बनाव्युं तेथी कन्या
आने न वरी. आम सगरना मंत्रीनुं कपट जाणी (परमां ईष्ट–अनिष्टपणानी द्रष्टि होवाथी) क्रोधवडे
निदान कर्युं के मारा तपनुं फळ आ थाओ के “जन्मान्तरमां सगरना कुळने निर्मूळ करुं” त्यार पछी
मधुपिंगल मरीने महाकालासुर नामे असुरदेव थयो.
(चावल) एम अर्थ करवाने बदले व्रीहि एटले बकरां एवो अर्थ करीने तेने यज्ञमां होमवां एम
हिंसानी पुष्टी करेली तेने) पशुनी हिंसारूप यज्ञनो सहायी थवा कह्युं ने सगरराजाने यज्ञनो उपदेश करी
यज्ञ कराव, तारा यज्ञनो हुं सहायी थईश, एम कह्युं त्यारे सगरराजा पासे यज्ञ करावी पशु होम्या. ते
पापथी सगर सातमी नरके गयो अने काळासुर सहायक थई यज्ञकर्ताने स्वर्गे जतो देखाड्यो एम
मधुपिंगले द्रव्यमुनि थईने उंधी मान्यता वश निदान करी महापाप उपार्जन कर्या. तेथी आचार्य कहे छे
के परमां कर्तापणुं–ईष्ट–अनिष्टपणुं तथा संयोगथी भलु भुंडुं माननार त्यागी मुनि थाय तो पण भाव
बगडे छे ने तेथी सिद्धि पामता नथी.