Atmadharma magazine - Ank 213a
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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अषाढ : २४८७ : :
वर्ष अढारमुं : अंंक ९ मो संपादक : भानुभाई मुळजीभाई लाखाणी अषाढ मास : २४८७
परमां कर्तापणानुं मूळ अज्ञान
द्रव्यने परिणाम होय छे केमके दरेक द्रव्य नित्य परिणाम स्वभावी छे.
(परिणाम=परिणति, क्रिया दशा, हालत, अवस्था, कार्य) परिणाम परिणामी द्रव्य
विना होता नथी. तो परिणामनो कर्ता कोण? जो एम मानवामां आवे के परिणाम
छे पण तेनो कर्ता अन्य द्रव्य छे, तो परिणाम अर्थात् कार्यनो आधार गुण अने
एवा अनंतगुणनो आधार द्रव्य स्वत: सिद्ध न ठरे; द्रव्यनुं लक्षण सत् अने उत्पाद–
व्यय–ध्रौव्ययुक्त जे सत् ते पण साबित न थाय.
परिणाम समये समये नवा नवा थाय छे. एवा अनंत परिणामनो समूह ते
गुण छे. अने एवा अनंत गुणनो समूह ते द्रव्य छे. जे जीव परिणामनो कर्ता
स्वद्रव्यने न मानतां पर द्रव्यने माने छे ते स्व–गुणने अने स्व द्रव्यने ज मानतो
नथी.
वस्तुत: (खरेखर) दरेक द्रव्य अनादि अनंत अने स्वत: सिद्ध होवाथी तेना
सत्तात्मक अनंतागुण अने तेना दरेक समये थता उत्पाद–व्ययरूप परिणाम पण
स्वत: सिद्ध छे. एवी तेनी स्वतंत्र मर्यादा छे. “
वस्तु सीम्नो अनतिक्रमात्” “
खलु अचलितस्य वस्तुस्थिति सीम्नो भेत्तुम्अशक्यत्वात्” (स. सार गा. १०३
टीका) आम त्रणेकाळे होवाथी परथी अकृत द्रव्य–गुण अने पर्याय स्वयंमेव
अकृतिम छे अर्थात् पर वडे करवामां आवे एवां नथी.
द्रष्टांत तरीके एक जीवने क्रोधादि परिणाम थयां ने ते तेना ज्ञानमां जणाया ने
पोते कर्या तो थया छे एम स्पष्ट अनुभवथी नक्की पण थाय छे छतां तेने परथी–
निमित्तथी थया एम जे माने तो ते द्रव्य–गुण–पर्याय कोईने सत् एटले स्वत: सिद्ध
मानतो नथी. सांख्यादि मतमां जेम ईश्वरने लोकनो कर्ता मानवामां आवे छे तेना
जेवा ज निमित्तथी परनुं कर्तापणुं माननारा मिथ्याद्रष्टि छे. ए कर्तापणानुं मूळ
अज्ञान छे, जे स्वतंत्रतानी हिंसा करनार छे. (ता. २०–६–२७ चर्चाना आधारे)