Atmadharma magazine - Ank 213a
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २१३
– परम शांति दातारी –
अध्यत्म भवन
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधि शतक’ उपर पू. गुरुदेवना
अध्यात्म भावना भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
(अंक र०७ थी चालु)
आ ‘समाधिशतक’ ना रचनार श्री पूज्यपाद स्वामीय लगभग
१४०० वर्ष पहेलां थई गयेला महान दिगंबर संत छे, तेनुं बीजुं नाम
‘देवनंदी’ हतुं; तेओ विदेहक्षेत्रे सीमंधर भगवान पासे गया हता–एवो
पण शिलालेखोमां उल्लेख छे. तेमणे तत्त्वार्थसूत्रनी ‘सर्वार्थसिद्धि’ टीका
तथा जैनेन्द्र व्याकरण वगेरे महान ग्रंथो रच्या छे. तेमनी अगाधबुद्धिने
लीधे योगीओए तेमने ‘जिनेन्द्रबुद्धि’ कह्या छे.–आवा महान आचार्यना
रचेला ‘समाधिशतक’ उपरनां आ प्रवचनो छे.
‘आत्मधर्म’ ना घणा जिज्ञासु वांचको तरफथी सहेला लेखोनी
मांगणी थतां, अंक १प८ थी आ लेखमाळा शरू करवामां आवी छे. आ
प्रवचनो अध्यात्मरसथी भरपूर होवा छतां सरळ अने सहेलाईथी समजी
शकाय तेवां छे. आथी वांचक वर्गने आ लेखमाळा विशेष पसंद पडी छे.
*
(२४८२ अषाड सुद सातम: समाधिशतक गा. प०)
ज्ञानीने पोताना आत्मानी ज प्रीति ने आत्मानो ज विश्वास छे, संयोगमां ते स्वप्नेय सुख मानता
नथी, एम गाथा ४९ मां कह्युं; त्यां हवे प्रश्न थाय छे के जो एम छे तो भोजन वगेरे कार्योमां ज्ञानीनी प्रवृत्ति