Atmadharma magazine - Ank 214
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd. No. B 5669
गुरुदेवे आपेल ज्ञानमंत्र
आध्यात्मिक कवि दीपचंदजी “ज्ञानदर्पण” ना नीचेना बे सवैया द्वारा
शुभाशुभथी भिन्न ज्ञानचेतनानुं स्वरूप बतावीने कहे छे के गुरुदेवे दीधेला आवा
ज्ञानमंत्रने ध्याववाथी दुःख दूर थई जाय छे:–
एक वन माहिं जैसे रहतुं पिशाची दोई, एक नर ताको तहां अति दुःख द्यावे है;
एक वृद्ध विकराल भाव धरी त्रास करे, एक महा सुंदर सुभावकों लिखावे है.
देखी विकराल ताको मन मांही भय माने, सुंदर को देखी ताको पीछे दौरि धावे है;
असो खेदखिन्न देखी काहू जन मंत्र दीयो, ताको उर आनि वो निःशंक सुख पावै है.
तैसे याही भव जामें संपत्ति विपत्ति दोउ, महा सुख–दुःखरूप जनको करतुं है;
गुरुदेवे दीयो ज्ञानमंत्र जब जब ध्याये, तब न सताव दोउ दुःखको हरतु है,
करीके विचार उर आनिए अनुप भाव, चिदानंद दरसा: भावको धरतु है;
सुधापान कीए और स्वादको न चाखे कोउ कीए सुध रीति सुध कारज सरतु है.
।। ४८–४९।।
भावार्थ:– जेम एक वनमां बे पिशाची–डाकण रहे छे, अने त्यां एक
मनुष्यने घणुं दुःख दे छे; एक डाकण तो वृद्ध–विकराळभाव धारण करीने
त्रास आपे छे अने बीजी महासुंदर रूप दर्शावीने ललचावे छे. तेमां तेना
विकराळ रूपने देखीने तो ते मनुष्य भय पामे छे. अने सुंदर रूप देखीने
तेनी पाछळ दोडीने फसाय छे.– ए रीते तेने खेदखिन्न देखीने कोई पुरुषे तेने
मंत्र दीधो. तेने अंतरमां धारण करवाथी ते निःशंक–निर्भय थईने सुख
पाम्यो. तेम आ विकट भववनमां संपत्ति अने विपत्ति ए बे डाकण समान
सुख अने दुःखनुं रूप धारण करीने जीवने अतिशय खेदखिन्न करे छे.–शुभना
फळरूप अनुकूळतामां तो सुख मानीने जीव तेनी पाछळ दोडे छे, ने
अशुभना फळरूप प्रतिकूळताथी अत्यंत भयभीत थईने डरे छे. ए रीते ते
महा दुःखी थाय छे. त्यां गुरुदेवे करुणा करीने शुद्ध चेतनारूप ज्ञानमंत्र तेने
आप्यो; गुरुदेवे दीधेला ज्ञानमंत्रने ज्यारे ते ध्यावे छे त्यारे संपत्ति–विपत्ति
तेने सतावी शकती नथी ने तेनुं दुःख दूर थई जाय छे.–आ प्रमाणे विचार
करीने, चिदानंद स्वभावरूप ज्ञानमंत्रने धारण करो अने तेना
अनुपमभावने पोताना अंतरमां प्रगट करो. ते ज्ञानमंत्र द्वारा शुद्ध चेतनानुं
सुधापान कर्या पछी बीजा कोई स्वादने जीव चाखतो नथी. चैतन्य रसना
स्वाद पासे जगतनां बीजा बधा स्वाद तेने नीरस लागे छे. शुद्ध चेतना
भावरूप आ रीते अंगीकार करवाथी जीवनुं शुद्ध कार्य सरे छे.
श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती,
मुद्रक अने प्रकाशक : हरिलाल देवचंद शेठ: आनंद प्रेस: भावनगर.