छे ते कांई धर्म नथी, ते शुभने कारणे कांई धर्म के साधकदशा टकेली नथी.
छठ्ठागुणस्थानवर्ती मुनिने शुभयुक्त कह्या तेथी कांई ते शुभरागने कारणे मुनिदशा
टकेली छे एम नथी. त्यां पण जे शुद्धपरिणति छे तेनाथी ज मुनिदशा टकेली छे
शुद्धपरिणति वगरनो एकलो शुभ– उपयोग होय तो तेने कांई मुनिदशा के धर्म
होतो नथी. धर्मरूपे परिणमेला मुनिओने (के बीजा सम्यग्द्रष्टि जीवोने) शुभ
उपयोग होय छे–एम कह्युं तेथी कांई ते शुभउपयोग पोते धर्म नथी. हा, एटलुं खरुं
के साधकने एक ज पर्यायमां धर्म अने शुभोपयोग ए बंने साथे रही शकवामां
विरोध नथी. जेम सम्यक्श्रद्धा अने मिथ्याश्रद्धा साथे रही शकती नथी, केमके तेमने
साथे रहेवामां विरोध छे; परंतु तेम शुद्धपरिणतिरूप धर्म अने शुभउपयोगने साथे
रहेवामां विरोध नथी, ते बंने साथे रही शके छे. भले साथे रहेवामां विरोध न होय
छतां जे शुभराग छे ते शुद्धतानो विरोधी ज छे; केमके शुद्धता तो संवर निर्जरानुं
कारण छे ने शुभराग तो आस्रवनुं कारण छे शुद्धोपयोगदशा तो निरास्रव, शांत,
अकषायरूप छे, ने शुभोपयोग ते सास्रव, कषायकलेशथी सहित छे. शुभोपयोगी
छठ्ठागुणस्थानवर्ती मुनि पण रत्नत्रयसहित होवाथी श्रमण तो छे ज, पण ते मुख्य
नथी, मुख्य तो शुद्धोपयोगी श्रमणो ज छे, तेओ साक्षात् धर्मरूप परिणमेला छे;
शुभोपयोगी श्रमणो तेमनी पाछळ छे,– गौण छे; तेओ शुद्धोपयोगना किनारे रहेला
छे. सातमा गुणस्थानवाळा श्रमणो तो साक्षात् शुद्धोपयोगमां लीन छे, ने छठ्ठा
गुणस्थानवाळा श्रमणोने हजी शुभ वृत्ति होवा छतां तेओ पण शुद्धपरिणतिरूप धर्म
सहित होवाथी, क्षणमां विकल्प तोडीने शुद्धोपयोग प्रगट करशे. आ रीते
शुद्धपरिणति सहित होवाथी ते पण श्रमण छे, मोक्षमार्गी छे.