: १८ : आत्मधर्म : २१४
घडानी उत्पत्ति माटीना स्वरूपे जोवामां आवे छे, पण घडानी उत्पत्ति कुंभारना स्वरूपे जोवामां
भाई, तुं विचारपूर्वक जो तो खरो के आ जगतमां स्वपरिणाम पर्यायरूपे उपजती बधी वस्तुओ
निमित्तभूत जे अन्यद्रव्य छे तेने स्पर्श्या वगर ज दरेक द्रव्य पोतानी पर्यायपणे उपजे छे. भाई,
आचार्यदेव कहे छे के अहो! आवा भेदज्ञानवडे यथार्थ वस्तुस्थिति विदित थाओ...अने अज्ञान
अस्त थई जाओ. ‘हुं तो ज्ञान छुं’–एवा अनुभवमां रागादिनी उत्पत्ति थती नथी. परद्रव्य कांई एम
प्रेरणा नथी करतुं के तुं मारा उपर राग कर, के तुं अमारा उपर द्वेष कर.–तो पछी परद्रव्यनो वांक शा
माटे काढीए? जीव पोते पोताना ज्ञानस्वभावथी विमुख थईने राग–द्वेषरूपे परिणमे छे. जो पोते
पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने परिणमे तो राग–द्वेष थता नथी. हे जीवो! तमे आ प्रमाणे
जाणो: आवी वस्तु स्थिति जाणतां ज तमारुं अज्ञान अस्त थई जशे ने अपूर्व ज्ञानप्रकाशनो उदय थशे.–
एम आचार्य भगवाननो उपदेश छे.
य