श्रावण : र४८७ : १७ :
तत्त्वद्रिष्टथी जाेतां शुं देखाय छे?
समयसार गाथा ३७र मां यथार्थ वस्तुस्थिति प्रसिद्ध करीने
आचार्यदेव कहे छे के हे जीवो! तमे आ प्रमाणे जाणो; आवी
वस्तुस्थिति जाणतां ज तमारुं अज्ञान अस्त थई जशे...ने अपूर्व
ज्ञानप्रकाश प्रगट थशे.
(उपरोक्त गाथा उपरनुं पू. गुरुदेवनुं आ प्रवचन छे.)
अहीं आचार्यदेव महासिद्धांत समजावे छे के भाई, तारी पर्यायना उत्पादमां परद्रव्य जरापण
प्रतिभासतुं नथी. जगतमां कोई द्रव्य बीजा द्रव्यनी पर्यायने उपजावी शकतुं नथी. परद्रव्य रागादिक उपजावे–
एम देखवुं ते तत्त्वद्रष्टि नथी; केमके तत्त्वद्रष्टिथी जोतां राग–द्वेषने उपजावनारुं अन्य द्रव्य जराय देखातुं
नथी; सर्व द्रव्योनी (–पर्यायनी) उत्पत्ति पोताना स्वभावथी ज थती अंतरंगमां अत्यंत प्रगट प्रकाशे छे.
जुओ, आ तत्त्वद्रष्टि! भाई, एकवार नक्की तो कर के ते–ते पर्यायरूपे परिणमवुं ते तारो पोतानो
धर्म छे, कांई परद्रव्य तारी पर्यायने उपजावतुं नथी. राग परद्रव्य करावे–एम देखनार जीवने तत्त्वद्रष्टिनी
खबर नथी. जगतमां आ तो अत्यंत प्रगट देखाय छे के दरेक द्रव्य पोताना स्वभावथी ज पोतानी पर्यायरूपे
ऊपजे छे. भगवान! तारा बंधमां के मोक्षमां तुं एकलो ज छो; तुं तारी प्रज्ञाना अपराधथी ज संसारमां
रखड्यो, ने पोतानी प्रज्ञाना गुणथी ज तुं मोक्ष पामे छे. तारा सुखने के दुःखने बीजुं कोई उपजावतुं नथी
आचार्यदेव गाथामां स्पष्टपणे वस्तुस्थिति प्रकाशे छे के –
को द्रव्य बीजा द्रव्यने उत्पाद नहि गुणनो करे,
तेथी बधांये द्रव्य निज स्वभावथी उपजे खरे. ३७२.
रागादिभावो जीवना स्वभावमां नथी, तेमज परद्रव्यमां पण नथी.–वळी अन्य द्रव्यथी अन्य द्रव्यना
गुण के पर्यायने उत्पन्न करी शकाता नथी. सर्वे द्रव्यो पोतपोताना स्वभावथी ज उपजे छे,–ए सिद्धांत छे.
माटे, जीवने परद्रव्य रागादिक उपजावे छे–एम शंका न करवी कोई वस्तुमां एवी योग्यता ज नथी के परनी
अवस्थाने ते उपजावी शके. पोतानी पर्यायरूप जे पोतानो स्वभाव ते रूपे वस्तु पोते ज उपजे छे. शुं
रागपणे परद्रव्य उपजे छे?–ना; तो परद्रव्य