Atmadharma magazine - Ank 214
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४८७ : :
एक.ज.मार्ग
मोक्षनो पारमार्थिक पंथ शुं छे?
अर्हंत भगवान जेवा पोताना शुद्धात्माना ज्ञान वडे मिथ्यात्वनो क्षय करीने,
पछी तेमां ज एकाग्रतारूप शुद्धोपयोग वडे राग–द्वेष–मोहनो अत्यंत क्षय करवो, ते ज
मोक्षनो मार्ग छे. आ ज एक, तीर्थंकर भगवंतोए पोते अनुभवीने भव्यजीवोने
दर्शावेलो मोक्षनो मार्ग छे.
केवो छे मोक्षमार्ग?
मोक्षमार्ग ‘अद्वैत’ एटले के एक ज प्रकारनो छे. तेमां बीजो प्रकार नथी. जे अनंत
तीर्थंकरो थया ते बधाय तीर्थंकरो आ एक ज प्रकारे मोक्षमार्गन्रुं सेवन करीने, अने एक
ज प्रकारे मोक्षमार्गनो उपदेश करीने, मुक्तिमां सीधाव्या छे. आ काळना मुमुक्षुओने माटे
के भविष्य काळना मुमुक्षुओने माटे आ एक ज मार्ग भगवाने उपदेश्यो छे.
शुद्धोपयोग ज मोक्षमार्ग छे;–परंतु एम नथी के शुभराग पण मोक्षमार्ग छे.–बस,
एक ज मार्ग छे. शुभराग व्यवहारथी तो मोक्षमार्ग छे ने?–ना; मोक्षमार्गमां बीजा
प्रकारनो अभाव छे, मोक्षमार्ग एक ज छे. त्रणेकाळने माटे, अने बधाय मुमुक्षुओने माटे
बधाय तीर्थंकर भगवंतोए आ एक ज मोक्षमार्ग उपदेश्यो छे.
अहा, जुओ निःशंकता! आचार्यदेव पोताना अभिप्रायनी निशंकता साथे
त्रणकाळना तीर्थंकरोने भेळवे छे. आटलु्रं अभिप्रायनुं त्रिकाळी जोर छे.
शुं अनंतकाळना तीर्थंकरोने तमे जाणी लीधा?
–हा; वर्तमान सम्यक् अभिप्रायना जोरे त्रणकाळना तीर्थंकरोनो निर्णय थई गयो
छे. स्वानुभवना जोरे कहीए छीए के पूर्वे अनंता तीर्थंकरोए जे मार्ग साध्यो ने जे
उपदेश कर्यो ते ज मार्ग अने ते ज उपदेश आ पंचमकाळमां पण चाली रह्यो छे.
त्यारपछी, १९९ मी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के, जिनो, जिनेन्द्रो अने श्रमणो,
(अर्थात् केवली भगवंतो, तीर्थंकरो अने मुनिओ,) आ रीते ज एटले के शुद्धात्मामां
प्रवृत्ति वडे ज मार्गमां आरूढ थया थका सिद्ध थया;–परंतु एम नथी के बीजी रीते पण
थया होय. तेथी नक्की थाय छे के आ एक ज मोक्षनो मार्ग छे,–बीजो नथी. अहो, अभेद
नमस्कार हो शुद्धात्मामां प्रवर्तेला ते सिद्धोने, अने तेमणे सेवेला मोक्षमार्गने! अमे पण
ए मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे, अने ते मोक्षमार्गने साधवानुं कृत्य कराय छे. हे
तीर्थंकरो! आपे सेवेला मार्गने साधतो साधतो हुं पण आपना पंथे चाल्यो आवुं छुं.
अहो, आवो स्वाश्रित मोक्षमार्ग उपदेशनारा तीर्थंकरोने–संतोने नमस्कार हो.