Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARME Regd. No. B 5669
वै रा ग स मा चा र
राजकोटना आगेवान शेठ श्री मूळजीभाई चत्रभुज लाखाणीना सुपुत्र श्री भानुभाई ३२ वर्षनी
भरयुवान वये राजकोटमां ता. २८–९–६१ ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ तत्त्व जिज्ञासु हता अने पू
गुरुदेव प्रत्ये अत्यंत भक्तिभाव धरावता हता. पू. गुरुदेव ज्यारे राजकोट पधारता त्यारे तेमनां प्रवचनो
अत्यंत उल्लास भावे श्रवण करता हता अने अवारनवार सोनगढ आवीने पण लाभ लेता हता, तथा
राजकोटना वांचनमां पण हाजरी आपता हता. छेल्ला थोडा समयथी तेओ ‘आत्मधर्म’ ना संपादक हता.
आ आघातजनक प्रसंगे शेठश्री मूळजीभाई अने तेमना कुटुंबीजनो प्रत्ये हार्दिक दिलसोजी व्यक्त
करीए छीए अने अनित्य वस्तुस्थितिना वैराग्यमय चिंतनवडे तेओनुं दुःख ओछुं थाय तथा भानुभाईनो
आत्मा पण सद्धर्मनी आराधना करीने आत्मकल्याणने साधे एम भावना भावीए छीए. संसारनुं स्वरूप
ज एवुं छे के तेमां अनुकूळता अने प्रतिकूळताना प्रसंग तो आवे ज, तेवा प्रसंगमां आत्मार्थने न चूकवो ने
वैराग्य भावना द्रढ करवी–एवो गुरुजनोनो उपदेश छे. पू गुरुदेव घणीवार वैराग्यथी कहे छे के ज्यां
निरूपायता छे त्यां सहनशीलता ज सुखदायक मानवी. गुरुदेवना वचन अनुसार शेठ श्री मूळजीभाई
वगेरेने सहनशीलता प्राप्त थाय–एवी भावना पूर्वक अमे तेमना पर आवी पडेला आ दुःखमां समवेदना
प्रगट करीए छीए.
जैन साहित्यनी प्रभावना माटे योजना
श्री दिगंबर जिनमंदिरो तथा स्वाध्याय मंदिरोने श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ
तरफथी प्रसिद्ध थयेल सत्साहित्य मुंबईना एक उदार सद्गृहस्थ तरफथी योग्य लागे ते मुजब भेट अगर
अर्धमूल्यथी आपवामां आवशे.
जेमने आवश्यकता होय तेओ ते ते शहेरना दिगंबर जैनसमाजना बे अग्रगण्य सभ्योनी सही साथे
नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार करे. साहित्य विना मूल्ये जोईए छे के अर्धा मूल्ये–ते पण जणावे.
उपरोक्त योजना सं. २०१८ ना मागसर सुद पुनम सुधी अमलमां रहेशे; तो ते दरमियान जे जे
साहित्यनी आवश्यकता होय ते मंगावी लेवुं. अहींथी प्रसिद्ध थयेल सत्साहित्यनी नामावलिनी जरूर होय
तेमणे अहींथी पोस्टद्वारा मंगावी लेवी.
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)
ग्राहकोने जरूरी सूचना
आगामी अंके आत्मधर्मनुं वर्ष पूरुं थशे, अने चालु सालना बधा ग्राहकोनां लवाजम पण पूरां थशे.
नवा वर्षनुं लवाजम रूा. चार आपे न भर्या होय तो तुरत भरी देवा विनंति छे. पोताना गामना
मुमुक्षुमंडळमां पण लवाजम भरी शकाय छे.
वी. पी. द्वारा मंगाववुं होय तेमणे ते संबंधी सूचना लखी मोकलवा विनंति छे.
जेओ ग्राहक तरीके चालु रहेवा न ईच्छता होय तेओ कार्यालयने खबर आपे एवी विनंति करवामां
आवे छे.–जेथी संस्था वी. पी. ना खर्चमांथी बची शके.
लवाजम मोकलवानुं सरनामुं:– श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट–सोनगढ (सौराष्ट्र)
दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती मुद्रक–प्रकाशक हरिलाल देवचंद शेठ आनंद प्रिन्टींग प्रेस–भावनगर.