Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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३. पू. गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनी वाणीनो विशेष प्रचार थई शके ते माटे नीचे
मुजबनी योजना मंजुर करवामां आवी–
घणा लांबा समयथी अनेक स्थानोथी एवी मागणी करवामां आवे छे के योग्य
व्यक्तिने वांचन माटे मोकलो. केटलांक कारणोथी अनेक जिज्ञासुओ सोनगढ आवीने पू.
गुरुदेवनी साक्षात् वाणीनो लाभ लेवा असमर्थ होय छे तेथी आवश्यकता प्रमाणे समय
समय पर योग्य व्यक्ति अल्प समय माटे जो तेवा स्थाने जई शके तो प्रभावनानुं कारण
थाय; तेथी आ कार्यने माटे नीचे मुजब व्यवस्था नक्की करवामां आवी–
जे जे गाममां हाल वांचन वगेरे चाली रह्यां छे त्यां हालमां कोण भाई वांचन करे छे,
तथा तेओ हिंदी वगेरे कई भाषा जाणे छे. तेनी योग्यता सहित पूरो परिचय मंगाववो अने
तेमांथी योग्य व्यक्तिने चूंटीने योग्य स्थान पर मोकलवामां आवे. अने ते भाईने निवेदन
करवामां आवे के तेओ वर्षमां ओछामां ओछुं एक वखत अने ओछामां ओछा १० दिवस
आ योजनानी पूर्ति करवा माटे पोतानी अनुकूळता मुजब टाईम आपवानुं मंजुर करे.
उपरोक्त कार्यमां सहयोग देवाने समर्थ होय एवा भाईओनुं सम्मेलन वर्षमां
एकवार सोनगढमां करवामां आवे अने तेमां तेओनी योग्यतानो परिचय प्राप्त करवामां
आवे तथा तेमने योग्य मार्गदर्शन आपवामां आवे.
उपरनी योजनानी पूर्ति माटे योग्य व्यक्तिनुं नाम तथा तेमनुं सरनामुं ते ते गामना
मंडळना प्रमुख के सेक्रेटरी द्वारा तुरत मोकलवा कृपा करवी, जेथी आ दिशामां प्रगति थई शके.
गत मासमां धार्मिक दिवसो दरमियान समयसारनी ३८मी गाथाथी ४९मी गाथा
उपर सुंदर प्रवचनो थया. तथा पद्मनंदीपच्चीसीमांथी उपासकसंस्कार अथवा श्रावकाचार
नामना छठ्ठा अधिकार उपर प्रवचनो थया. तेमां श्रावकना धर्मनुं अने दररोजना कर्तव्यनुं
सुंदर भावभीनुं वर्णन सांभळतां जिज्ञासुओने प्रमोद थतो हतो. आ उपरांत दस लक्षणी पर्व
दरमियान दररोज भगवान श्री अकलंकस्वामीरचित तत्त्वार्थराजवार्तिकमांथी दस लक्षणधर्मनुं
विवेचन थतुं हतुं.
श्रावण मासमां प्रौढ शिक्षणवर्गमां ६२ गामना १प० जेटला जिज्ञासुओ आव्या हता.
अने शिक्षणवर्गनी पूर्णता प्रसंगे घणा भाईओए पू. गुरुदेव प्रत्ये गद्य–पद्यमां भक्तिभाव
व्यक्त कर्यो हतो.
दसलक्षणीपर्व आनंदथी ऊजवायुं हतुं. दररोज दसलक्षण मंडलमां उत्तम क्षमादिनुं
पूजन थतुं हतुं. दसवर्ष पहेलां ३प जेटला बहेनोए शरू करेल सुगंधदशमी विधान आ वर्षे
समाप्त थतुं होवाथी तेनुं उद्यापन करवामां आव्युं हतुं. उद्यापन निमित्ते भेटनी वस्तुओ
लईने जुलूसरूपे सौ बेनो जिनमंदिर आव्या हता. त्यारबाद दस पूजन तथा दस स्तोत्र
पूर्वक भक्तिथी दसवर्षनुं विधान पूर्ण थयुं हतुं. सांजे सर्वे मंदिरमां धूपक्षेपण थयुं हतुं.
भादरवा सुद चोथे (पर्युषणना पहेला दिवसे) भगवाननी रथयात्रा नीकळी हती.
भादरवा सुद त्रीजे श्रुतपूजा थई हती. भादरवा सुद पांचमे शास्त्रजीनी रथयात्रा नीकळी
हती. भादरवा सुद पुनमे दस लक्षणपर्वनी पूर्णताना हर्षोपलक्षमां भगवाननी रथयात्रा
नीकळी हती. अने भादरवा वद एकमनी सांजे क्षमावणी–पूजन बाद श्री जिनेन्द्र भगवाननो
महाअभिषेक थयो हतो. दररोज जिनमंदिरमां भावभीनी भक्ति थती हती. आम पूज्य
गुरुदेवना मंगल प्रतापे धामिकपर्व विधविध कार्यक्रमपूर्वक आनंदथी ऊजवायुं हतुं.