Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४८७ : :
प च र त्न
* * * * *
श्री प्रवचनसारनी छेल्ली पांच गाथा खास सारभूत होवाथी आचार्यदेवे तेने
पंचरत्न कह्या छे, तेना उपर पू. गुरुदेवना सुंदर प्रवचनो अहीं आप्या छे.
[प्रवचनसार गाथा २७१ थी २७प उपरनां प्रवचनोमांथी]
आचार्यदेव कहे छे के शास्त्रनां मुगटमणि जेवां आ पांच निर्मळ रत्नो
जयवंत वर्तो!
प्रवचनसारनी छेल्ली पांच गाथाओने आचार्यदेवे “पंचरत्नो’ कह्यां छे; केवां
छे ते पंच रत्नो? शास्त्रने कलगीनां अलंकार समान छे, टूंकामां भगवान
अर्हंतदेवना आखाय शासनने प्रकाशनारां छे, अने संसार तथा मोक्षनी भिन्नभिन्न
स्थितिने जगत समक्ष प्रगट करे छे;–संसारनो पंथ, अने मोक्षनो पंथ,–ए बंनेनी
विलक्षण स्थितिने आ पांचरत्नो प्रकाशे छे. आवा आ निर्मळ पांचरत्नो (गाथा
२७१ थी २७प) जयवंत वर्तो.
जे चीज उत्तम होय तेने रत्न कहेवाय छे. पाणीमां जे उत्तम होय तेने
जलरत्न कहेवाय छे, उत्तम पुत्रने पुत्ररत्न कहेवाय छे, तेम आ पांच उत्तम सूत्रोने
पंचरत्न कह्यां छे. रत्ननी जेम तेनो प्रकाश संसार अने मोक्षना मार्गने स्पष्टपणे
प्रकाशे छे.–शु संसारनो मार्ग छे, ने शुं मोक्षनो मार्ग छे, ते स्पष्टपणे प्रकाशीने
जीवोने मोक्षमार्गमां जोडे छे. संसारतत्त्वने जयवंत नथी कहेता, पण संसारतत्त्वनुं
स्वरूप बतावनारुं आ सूत्र तथा तेनुं सम्यग्ज्ञान ते जयवंत वर्तो.
सिद्धभगवंतो त्रण लोकना चूडामणि छे, तेम आ पांच गाथाओ ते आ
प्रवचनसारशास्त्रनी कलगीनां अलंकार चूडामणि छे. (१) संसारतत्त्व शुं, (२)
मोक्षतत्त्व शुं, (३) मोक्षनुं साधनतत्त्व, (४) मोक्षना साधनरूप जे शुद्धोपयोग–ते
ज मोक्षार्थीना सर्व मनोरथनुं स्थान छे, अने (प) शास्त्रनुं फळ जे ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मानी प्राप्ति–एनुं स्वरूप प्रकाशनारा आ पांच रत्नो जयवंत वर्तो.
हवे अनुक्रमे ते दरेक तत्त्वनुं स्वरूप प्रकाशे छे :–