अर्हंतदेवना आखाय शासनने प्रकाशनारां छे, अने संसार तथा मोक्षनी भिन्नभिन्न
स्थितिने जगत समक्ष प्रगट करे छे;–संसारनो पंथ, अने मोक्षनो पंथ,–ए बंनेनी
विलक्षण स्थितिने आ पांचरत्नो प्रकाशे छे. आवा आ निर्मळ पांचरत्नो (गाथा
२७१ थी २७प) जयवंत वर्तो.
पंचरत्न कह्यां छे. रत्ननी जेम तेनो प्रकाश संसार अने मोक्षना मार्गने स्पष्टपणे
प्रकाशे छे.–शु संसारनो मार्ग छे, ने शुं मोक्षनो मार्ग छे, ते स्पष्टपणे प्रकाशीने
जीवोने मोक्षमार्गमां जोडे छे. संसारतत्त्वने जयवंत नथी कहेता, पण संसारतत्त्वनुं
स्वरूप बतावनारुं आ सूत्र तथा तेनुं सम्यग्ज्ञान ते जयवंत वर्तो.
मोक्षतत्त्व शुं, (३) मोक्षनुं साधनतत्त्व, (४) मोक्षना साधनरूप जे शुद्धोपयोग–ते
ज मोक्षार्थीना सर्व मनोरथनुं स्थान छे, अने (प) शास्त्रनुं फळ जे ज्ञानानंदस्वरूप
आत्मानी प्राप्ति–एनुं स्वरूप प्रकाशनारा आ पांच रत्नो जयवंत वर्तो.