Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 25

background image
: ४ : आत्मधर्म : २१प
[१]
हव पहल रत्न : : : गथ : २७१ :
त्त् स्रू प्र
समयस्थ हो पण सेवी भ्रम अयथा ग्रहे जे अर्थने,
अत्यंत फळसमृद्ध भावी काळमां जीव ते भमे. २७१.
जे जीव व्यवहारथी जैनशासनमां रहेलो होय, द्रव्यलिंगी थईने पंचमहाव्रतादि पाळतो होय, पण
अंतरमां अज्ञानने लीधे तत्त्वोने विपरीतपणे श्रद्धतो होय ते जीव मिथ्याश्रद्धाने लीधे, दीर्घकाळ सुधी
संसारमां परिभ्रमण करशे.
संसारमार्गमां आगेवान कोण, संसारतत्त्वमां सौथी मोटो कोण? तो कहे छे के द्रव्यलिंगी मिथ्याद्रष्टि
साधु ते संसारतत्त्व ज छे. केवो छे ते? स्वयं अविवेकथी तेणे पदार्थोने अन्यथा ज अंगीकार कर्यां छे, ऊंधी
द्रष्टिथी पदार्थोनुं स्वरूप विपरीतपणे ज समजे छे, पोतानो अभिप्राय ज विपरीत होवाथी ते शास्त्रोना
आशयने पण विपरीतपणे ज ग्रहण करे छे, भगवाननो अने श्रुतज्ञानी संतोनो अभिप्राय पण ते
अविवेकने लीधे ऊंधो ज ग्रहण करे छे, स्वयं अविवेकने लीधे तेने मिथ्यात्वनी महोर लागी छे; ऊंधी द्रष्टिथी
“आ तत्त्व आम ज छे” एम खोटा निश्चय वडे अतत्त्वश्रद्धा द्रढ करे छे. आ बधुं कोई परने लीधे नथी थतुं
पण ते जीव पोते स्वयं अविवेकी होवाथी, अने महा मोहमळथी मलिन छे तेथी ज ते विपरीतरूपे पदार्थनुं
स्वरूप मानीने, अतत्त्वश्रद्धान करे छे.–आवा जीवो भले द्रव्यलिंगी मुनि थईने जिनशासनमां रह्या होय तो
पण ते संसारतत्त्व ज छे, ते श्रमण नथी, पण श्रमणाभास छे. संसारतत्त्व एटले के बधाय मिथ्याद्रष्टि जीवो
केवा होय तेना उपर आ गाथा–रत्न प्रकाश पाडे छे. आ रीते विपरीतमान्यता जेनुं मूळ छे एवुं संसारतत्त्व,
तेनुं स्वरूप बतावीने तेनाथी छोडावे छे. स्वयं अविवेकथी ऊंधी श्रद्धा एवी द्रढ करी छे के तेमां संदेह करतो
नथी, ‘आ आम ज छे’ एम निश्चय कर्यो छे, तेणे महा मोह मळने एकठो कर्यो छे, शास्त्र वांचे तो तेमांथी
पण ऊंधी द्रष्टिने लीधे मोहमळने ज भेगो करे छे,–आवा जीवो व्रत–तप करता होय, संयम पाळता होय
तोपण मिथ्या अभिप्रायने लीधे अनंतकाळ सुधी अनंत भावांतर करीने भवभ्रमणमां रखडशे–तेथी तेने
संसारतत्त्व ज जाणवुं–ते द्रव्यलिंगी श्रमण थयो तेथी संसारतत्त्वमांथी जराय बहार नीकळ्‌यो हशे–एम संदेह
न करवो. स्पष्टपणे आ सूत्ररत्न तेना उपर प्रकाश नाखे छे के आ पण संसारतत्त्व ज छे, एनामां धर्म के
मोक्षमार्गनो अंश पण नथी. माटे जेने खरेखर संसारतत्त्वथी छूटवुं होय तेणे यथार्थतत्त्वनो निश्चय करीने
विपरीत अभिप्रायरूप मोहमळने नष्ट करवो. अहो, आ रत्नवडे अमृतचंद्राचार्ये मिथ्यात्वनां झेर उतारी
नाख्यां छे.
अरे, अविवेकी ऊंधी द्रष्टिवाळा जीवो मोहमळथी मलिन मनवाळा छे, तेओ जगतना एक परमाणुने
पण ऊंधी द्रष्टिमांथी बाकी राखता नथी, परमाणुने पण पराधीन माने छे; अरे, त्रण लोकना नाथ
सिद्धपरमात्माने पण बाकी राखता नथी, ते सिद्धभगवंतोने पण निमित्तना