Atmadharma magazine - Ank 216
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अढारमुं : अंंक १२ मो तंत्री: जगजीवन बाउचंद दोशी (सावरकुंडला) आसो : २४८७
साधकनुं वहाण सिद्धपुरीमां चाल्युं जाय छे.
सिद्ध भगवान जेवा ध्रुव सामर्थ्यवाळा पोताना आत्माने
ओळखीने तेनी द्रष्टिए साधकनुं वहाण मोक्षपुरीमां चाल्युं जाय छे. जेम
दरियामां ध्रुव–ताराना लक्षे वहाण चाल्या जाय छे, तेम संसारसमुद्रमां
ध्रुवचैतन्यना विश्वासे साधकना वहाण तरी जाय छे. ध्रुवचैतन्य
स्वभावने ज द्रष्टिना ध्येयरूप राखीने साधक आत्माना वहाण निःशंकपणे
सिद्धपुरीमां चाल्या जाय छे.
हे जीव! संयोगो अने क्षणिक भावो नाश पामवां छतां तारो ध्रुव
चिदानंद स्वभाव नाश पामतो नथी के तेमांथी कांई घटतुं नथी. माटे ते
ध्रुव स्वभावनो आश्रय कर...मोक्ष माटे तेना उपर मीट मांड...ते
ध्रुवस्वभावमां मीट मांडतां तेमांथी सदाकाळ ज्ञान–आनंदमय निर्मळ
पर्यायो ज नीकळ्‌या करशे...आ रीते ध्रुव चैतन्य स्वभावना भरोसे ज
तारुं वहाण संसार समुद्रथी तरीने मोक्षपुरीमां पहोंची जशे.
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