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* गृहवास संबंधी जे क्षोभ–कलेश–दुःख होय ते सम्यकत्वथी मटी जाय छे.
* गमे तेवा प्रसंग के उपद्रव आवी पडया होय पण सम्यकत्वनी भावनाथी शुद्धात्मा पर ज्यां
* सर्वज्ञो अने संतो जेनो आटलो–आटलो महिमा करे छे ते चीज तारा अंतरमां ज छे, तो अरे
* अहा, चैतन्यना शांतरसमां झुलता संतो जगतने तेनो मार्ग चींधी रह्या छे.
* चैतन्यना साधक धर्मात्मा संतो जगतनी कोई प्रतिकूळताथी डगता नथी; केमके तेमनी आराधना
* धर्मात्मा संतो अने मुनिओ जगतथी निरपेक्षपणे पोताना चैतन्यने साधवामां ज तत्पर छे.
* पहेलां सम्यग्दर्शननुं वास्तविकस्वरूप लक्षमां लईने, वारंवार चिंतन करीने, अंतर्मुख प्रवाहमां
* निर्विकल्प आनंदना अनुभव सहित सम्यग्दर्शन थयुं त्यां मोक्षनो दरवाजो खूल्यो.
* अहो, जे जे उत्तम पुरुषो पूर्वे सिद्धि पाम्या छे, अत्यारे पामे छे ने भविष्यमां पामशे–ते बधुं आ
* सम्यग्दर्शननी आराधना वगरनुं ज्ञान के चारित्र ते बधुं पोलंपोल छे, तेमां कांई सार नथी.
* स्वप्नमां पण धर्मात्माने चैतन्यनो अने आनंदनो महिमा भासे. आचार्यदेव कहे छे के आवा
* ज्ञानी–समकिती ज्ञान अने रागनी भेळसेळ करता नथी, तेमने जुदा ने जुदा ज जाणे छे. ज्ञानने
* सर्व परभावोथी पोताना ज्ञानने जुदुं ने जुदुं राखवुं (अनुभववुं) तेमां वीतरागी भेदज्ञाननो
* अहा, ज्ञानीना श्रीमुखेथी भेदज्ञाननी वार्ता अपूर्व उल्लासभावे जे सांभळे छे तेना चैतन्य–
* द्रष्टिअपेक्षाए सम्यद्रष्टिने मुक्त कह्यो छे, केमके तेनी द्रष्टिमां बंधनरहित शुद्धआत्मा ज छे.
* हे जीव! भेदज्ञानना अभ्यासनी एवी द्रढता कर के त्रणकाळ त्रणलोकमां आस्रवनो अंश पण
* भेदज्ञान ते ज धर्मलब्धिनो काळ छे. ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां जीव छूटकाराना पंथे चडयो.