Atmadharma magazine - Ank 217
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वीरप्रभुना मोक्षधाममां
पावापुरीधाममां पद्मसरोवरना किनारे आवेला जिनमंदिरमां पू.
गुरुदेव श्री वीरनाथ भगवानना दर्शन करी रह्या छे...ए भगवानने देखतां
ज आनंदथी हृदय प्रफूल्लित थाय छे. गुरुदेव एकीटशे भगवानने जोई ज
रह्या छे. वाह! जाणे साक्षात् महावीर भगवान ऊभा होय एवो अद्भुत
देदार छे. दिव्य, प्रशांत अने प्रसन्नताथी झरती ए मुद्रा जोतां, जाणे के हमणां
ज मोक्षमां जवानी तैयारी करीने अयोगीपणे भगवान ऊभा होय–एवा
भावो हृदयमां जागे छे. एमना लटकता लांबा हाथ जाणे के भक्तोनां शिर
पर मुक्तिना आशीर्वाद वरसावी रह्या छे. वीरप्रभुना चरणे भक्तिपूर्वक
ऊभेला गुरुदेव जाणे के भगवानने संबोधीने कही रह्या छे के–
प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे...
प्रभुजी! मारे बीजुं जोवानुं नहि काम...
मारा हृदये एक वीतरागता वसी रहो रे...