Atmadharma magazine - Ank 217
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: १९ अंक: १) तंत्री : जगजीवन बाउचंद दोशी (कारतक: २४८८
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परम पूज्य गुरुदेवनी मंगलकारी छायामां आपणुं
“आत्मधर्म” आजे १९मा वर्षमां प्रवेश करी रह्युं छे. नुतनवर्षना
मंगल प्रारंभे, परम अभिनंदनीय एवा श्री सिद्ध भगवंतोने तथा
अर्हंतभगवंतोने अतिशय भक्तिथी अभिनंदीए छीए..
सिद्धपदने साधनारा सर्वे साधकसंतो पण परम अभिनंदनीय छे,
अने तेना मार्गरूप शुद्ध रत्नत्रय ते पण परम अभिनंदनीय छे,
ते सर्वेने परमभक्तिथी अभिनंदीए छीए.
पू. गुरुदेवनो आपणा उपर जे उपकार छे तेनुं वर्णन थई
शके तेम नथी; आपणे बधाय मुमुक्षु भक्तजनो भेगा थईने
आखीये जिंदगी मनने अने जीभने तेमां ज जोडीए तो पण
ज्ञानीओनां गुणगान पूरा पडे तेम नथी. आजे हृदयनी हजार–
हजार ऊर्मिओपूर्वक तेओश्रीनो उपकार मानीए छीए ने
भक्तिपूर्वक तेओश्रीनां चरणकमळमां नमस्कार करीए छीए.
गुरुदेवनी मंगलछायामां आ “आत्मधर्म” द्वारा देव–गुरु–धर्मनी
सेवानो जे सुअवसर मळ्‌यो तेने अमे अमारुं सद्भाग्य मानीए
छीए. अने सर्वे साधर्मीबन्धुओना वात्सल्यभर्या सहकारथी
“आत्मधर्म” वधुने वधु समृद्ध अने सुशोभित बने, तेनो वधु ने
वधु विकास थाय एवी अमारी भावना छे.
सर्वे साधर्मी बन्धुओने पण धर्मस्नेहपूर्वक अभिनंदन
पाठवीए छीए.
–जगुभाई दोशी (तंत्री)
–हरिलाल जैन.