Atmadharma magazine - Ank 217
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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:४: आत्मधर्म: २१७
ज्ञानमयभाव
कर्मबंधनमां
निमित्त पण नथी
“धी” ने ध्येय प्रत्ये प्रेरे ते धीर”
(झोबाळीआ शांतिलाल कस्तुरचंदना मकानना वास्तु प्रसंगे)
स. गाथा १०प उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी (आसो वद ७)
आ देहमां रहेलो आत्मा सर्वज्ञस्वभावी छे; तेनुं भान करी, तेमां लीन थई जेओ सर्वज्ञ थया तेमणे
आत्मानुं वास्तविक स्वरूप जेवुं जाण्युं तेवुं दिव्यध्वनि द्वारा जगतने दर्शाव्युं. ते झीलीने संतोए आ
समयसारादि शास्त्रो रच्यां छे. आत्मानुं वास्तविक कार्य शुं छे? रागादि विकार ते आत्मानुं वास्तविक कार्य
नथी, अंतरना ज्ञानस्वभावना आश्रये थता जे निर्मळ ज्ञानादि परिणाम ते ज आत्मानुं वास्तविक कार्य छे.
आवा वास्तविक कार्यने जीवे पूर्वे कदी जाण्युं नथी, एने जाण्या वगर अनंतवार चारगतिमां अवतार कर्या.
आत्मानुं सम्यक्स्वरूप जाण्या वगर अनंतवार शुभरागवडे त्यागी थयो, व्रत पाळ्‌यां, पण ते रागने ज
निजकर्तव्य मानीने संसारमां रखडयो. रागथी पार चैतन्यतत्त्व छे तेनुं सम्यक्दर्शन एक सेकंड पण कदी कर्युं
नथी, सम्यग्दर्शनरूपी धर्म अपूर्व चीज छे, ते केम थाय तेनी आ वात छे.
आ चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा ते कर्मबंधननुं निमित्त नथी, तेमज ते चैतन्यस्वरूपना श्रद्धा–
ज्ञानना परिणाम थया ते पण कर्मबंधननुं निमित्त नथी. ते निर्मळ परिणामने विकारनी साथे पण
कर्ताकर्मपणुं नथी. स्वभाव तरफ वळेलो निर्मळभाव ते तो मुक्तिनुं कारण छे, कर्मने तोडवानुं कारण छे, तो
ते भाव कर्मना बंधननुं कारण केम होय..? अहा, सम्यग्दर्शन थयुं त्यां ते जीव कर्मना बंधनुं निमित्त पण
थतो नथी, ते तो ज्ञानभावरूप कार्यने ज करे छे. अहा, सम्यग्दर्शन शुं चीज छे तेना महिमानी जगतना
जीवोने खबर नथी. अने सम्यग्दर्शन पछी अंदरमां आनंदना उभरा आवतां मुनिदशा थाय–तेनी तो शी
वात!! “साधु हूआ सो सिद्ध हुआ.” प्रवचनसारमां शुद्धोपयोगी मुनिने मोक्षतत्त्व कह्या छे. आवी मुनिदशा
पहेलां सम्यग्दर्शन ते पण अपूर्व चीज छे.
दया–दानादिना परिणाम उपरथी ज्ञानी ओळखाता नथी, पण ज्ञानीने अंदरनो चैतन्यदरियो
मध्यबिंदुथी ऊछळीने आनंदनी भरती आवी छे, तेना वडे ज ज्ञानी ओळखाय छे. मंदरागना शुभ परिणाम
वडे चैतन्य दरियामां आनंदनी भरती आवे–एम बनतुं नथी. आवा चैतन्यनी वात जीवे अंतर्लक्ष पूर्वक कदी
सांभळी नथी. भगवाननी सभामां गयो त्यारे पण रागमां रोकाई गयो पण अंदरमां चैतन्यतत्त्वनी वातने
स्प–