अनादिथी निर्णय नहोतो एवो निर्णय पहेलां करीने ज्ञान ज्यां अंतर्मुख थयुं त्यां निर्विकल्प वेदनमां
ज्ञान अने विकल्प तद्रन जुदा पड्या, ज्ञान तो अंतरमां एकाकार थयुं, ने विकल्प बहार रही गयो.
अहो! सर्वज्ञताना धामरूप पोतानो आत्मा छे–एम तेनुं बहु ज माहात्म्य, बहु ज आदरने बहु ज
उत्साह लावीने उपयोग ते तरफ वळे त्यां निर्विकल्प सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थाय छे. नयपक्षनो
सूक्ष्म विकल्प ते पण आस्रव ज छे, हुं तो ज्ञानस्वभाव छुं ने मारे मारा ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन
करवा जेवुं छे–एवो द्रढ निर्णय कर्या वगर निर्विकल्पभाव कदी थाय नहि. जेना निर्णयमां ज भूल होय,
जे विकल्पना अवलंबनथी लाभ मानतो होय तेने कदी निर्विकल्पभाव अथवा तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान
प्रगटे नहि. भगवान शुद्धआत्मा विकल्प वडे नथी प्रकाशतो. पण निर्विकल्पभाव वडे ज प्रकाशे छे.
बहारनी चिंता तो क््यांय दूर रहो, पण अंदरना विकल्प वडे चिंता करतां पण आत्मा अनुभवातो
नथी चैतन्यमां जेणे पोतानो उपयोग लीन कर्यो छे एवा निश्चळ–निश्चिंत आत्मलीन पुरुषो वडे
शुद्धआत्मा अनुभवाय छे. अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करवा माटे आ ज एक साधन छे. जेनो परम
अचिंत्य महिमा छे एवो समयसार (शुद्ध आत्मा) जे निर्मळ परिणति वडे स्वयं आस्वादमां आव्यो,
विकल्पना अवलंबन वगर पोते पोताथी ज अनुभवमां आव्यो, ते ज्ञानरसथी भरेलो भगवान छे, ते
ज सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे. आचार्य भगवान कहे छे के अहो, विशेष शुं कहीए?–जे कांई छे ते
आ एक ज छे; अनुभूतिमां बधुंय समाई जाय छे.
कर्यो त्यां ते ‘भगवान’ थयो. सम्यग्द्रष्टि पोताना आत्माने ‘भगवान’ तरीके देखे छे. जेने सम्यग्दर्शन
थयुं ते ज परमात्मानो खरो भगत थयो, ते ज भगवाननो खरो दास थयो; अंतरमां झूकीने निर्विकल्प
थयो तेने सम्यग्दर्शन कहो, तेने मोक्षमार्ग कहो, तेने परमेश्वर कहो, तेने तरणतारण कहो, तेने मुक्त
कहो, भगवान कहो, तेने परम शांति कहो, अतीन्द्रिय आनंद कहो, भगवाननो साक्षात्कार कहो,
आत्मसाक्षात्कार कहो, ईश्वरनां दर्शन कहो, एने वीतरागीविज्ञान कहो, विकल्पातीत कहो, देहातीत
कहो, मनातीत कहो, वचनातीत कहो, धर्मात्मा कहो, पूज्य कहो, पंचपरमेष्ठीपद कहो.– आत्मानी
निर्विकल्पदशामां बधुंय समाई जाय छे.
वळ्युं ने विकल्प तरफथी पाछुं फर्युं. जेम समूहथी जुदुं पडीने बीजा फांटामां वळी गयेलुं पाणी वनमां
ज्यां त्यां भमतुं होय, पण जो ते पाणीने बळपूर्वक ढाळवाळा मार्गे पाणीना प्रवाह तरफ वाळवामां
आवे तो ते पाणीना प्रवाहमां भळी जईने, पोते पोताना प्रवाह तरफ खेंचाय छे, ने एक प्रवाह थई
जाय छे. तेम भगवान आत्मा परम चैतन्यरसनो मोटो प्रवाह छे; पण ते पोताना विज्ञानघन
स्वभावने भूलीने, स्वभावथी भ्रष्ट थईने, विकल्पना कर्तापणे विकल्पना गहनवनमां भमतो हतो,
पण हवे भेदज्ञान वडे रागने अने ज्ञानने जुदा जुदा जाणीने, ते भेदज्ञानना बळवडे आत्माने
विज्ञानघनस्वभावमां वाळवामां आव्यो; अने विकल्पोमांथी पाछो वाळवामां आव्यो; आवा भेदज्ञानी
जीव केवळ विज्ञानघन चैतन्यरसना ज रसीला छे, ते आत्माने विज्ञानरसवाळो ज अनुभवे छे. पहेलां
पर्याय परसन्मुख ढळीने विकल्परूपी वनमां भमती, ते पर्यायने ज्यां स्वसन्मुख वाळी त्यां चैतन्यना
उत्कृष्ट रसपूर्वक ज्ञान पोते पोतामां लीन थयुं. पर्यायनो प्रवाह चैतन्य–