Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: १९ अंक: २) तंत्री : जगजीवन बाउचंद दोशी (कारतक: २४८८
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लगनी अने प्राप्ति
आखा जगतना कोलाहलने छोडीने,
तारा चैतन्यनी शोध पाछळ लाग, चिदानंद
तत्त्व शुं छे तेनो पत्तो मेळववा तेनी लगनी
लगाडीने छ महिना तेना अभ्यास पाछळ
लाग,–तो जरूर अंतरधाममां तने तारा
चैतन्यनी आनंद सहित प्राप्ति थशे. बीजी
बधी कल्पना छोडीने एक चैतन्यना ज
चिंतनमां लाग, तो जरूर तेनी प्राप्ति तने
तारामां ज थशे, खरेखरी लगनीथी चैतन्यनो
पत्तो मेळववा मांगे अने तेनो पत्तो न मळे–
एम बने ज नहि; साचेसाची लगनीथी प्रयत्न
करतां चैतन्यतत्त्व स्वानुभवमां जरूर आवे छे.
(२१८)