Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 23

background image
आ छे, मारा गुरुजीनो उपदेश

* हुं ज्ञायक छुं–एवो निर्णय करीने
अंतरमां तेनो पत्तो मेळव.
* अने ज्यां सुधी ज्ञायकनो पत्तो न
मळे त्यां सुधी अंतरमां एनो प्रयत्न
कर्या ज कर, अने तेनो पत्तो....
* चैतन्यनिधि अहीं तारी पासे
विद्यमान पडी छे, उपयोगने अंतरमां
वाळ एटली ज वार छे.
* बधुंय तारामां पडयुं छे, क््यांय
बहार गोतवा जवुं पडे तेम नथी....मात्र
द्रष्टि बदलाववानी छे. द्रष्टि अंतरमां
वाळ...के तारा अचिंत्यनिधान तारी
सामे–तारी पासे ज पडया छे.
ते ज तारुं स्वद्रव्य छे, ने एनाथी बाह्य
बीजुं बधुंय पर द्रव्य छे, एम जाणीने
तारा स्वद्रव्यनुं ज अवलंबन कर.
स्वद्रव्यना अवलंबने मुक्ति सधाय छे.