Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म: २१८
वीर प्रभुनो मार्ग
(वीर सं. २४८८ना दीपावली उत्सव प्रसंगे
शीलप्राभृत गाथा ११–१२ना प्रवचनमांथी)
आजे भगवान महावीर परमात्मा पावापुरीथी मोक्ष
पाम्या. भगवाननो आत्मा आजे पूर्ण निर्मळ पर्याये
परिणम्यो, भगवान आजे सिद्ध थया. पावापुरीमां ईन्द्रो अने
राजाओए निर्वाणनो मोटो महोत्सव ऊजव्यो. ते दीवाळीनो
तेमज मोक्षना बेसता वर्षनो आजे दिवस छे. भगवानना
मोक्षने आजे २४८८मुं वर्ष बेठुं. भगवान पावापुरीथी
स्वभावउर्ध्वगमन करीने उपर सिद्धालयमां बिराजी रह्या छे.
अनादिकाळमां कदी नहोती थई एवी अपूर्व दशा आजे
भगवानने पावापुरीमां प्रगटी, तेथी पावापुरी पण तीर्थधाम
छे. सम्मेदशिखरनी यात्रा वखते पावापुरी यात्रा करवा गया
त्यारे त्यां अभिषेक कर्यो हतो; त्यां (सरोवर वच्चे) ज्यांंथी
भगवान मोक्ष पधार्या त्यां भगवानना चरणकमळ छे.
तीर्थंकरोनुं द्रव्य त्रिकाळ मंगळरूप छे. जे जीव केवळज्ञान
पामनार छे तेनुं द्रव्य पण त्रिकाळ मंगळरूप छे.
भगवाननो आत्मा त्रिकाळ मंगळस्वरूप छे. तेनुं द्रव्य
तो त्रिकाळ मंगळरूप छे, ज्यांंथी मोक्ष पाम्या ते क्षेत्र पण
मंगळ छे, आजे मोक्ष पाम्या तेथी आजनो काळ पण
मंगळरूप छे, ने भगवानना केवळज्ञानादिरूप भाव ते पण
मंगळरूप छे, आ रीते भगवान महावीर परमात्मा द्रव्य–क्षेत्र–
काळ ने भावथी मंगळरूप छे. भगवान मोक्ष पामतां अहीं
भरतक्षेत्रमां तीर्थंकरनो विरह पड्यो. भगवाननुं स्मरण
करीने भगवानना भक्तो कहे छे के हे नाथ! आपे
चैतन्यस्वभावमां अंतर्मुख थईने आत्मानी मुक्तदशाने साधी,
ने एवो ज आत्मा वाणीद्वारा अमने दर्शाव्यो. एवा स्मरणथी
श्रद्धा–ज्ञाननी निर्मळता करे ते मंगळ काळ छे, ज्यां एवी
निर्मळदशा प्रगटे ते मंगळ क्षेत्र छे. श्रद्धा–ज्ञाननो जे भाव छे
ते मंगळ भाव छे, ने ते आत्मा पोते मंगळरूप छे.
भगवाननो मोक्षकल्याणक ऊजव्या पछी ईन्द्रो अने देवो
नंदीश्वर द्वीपे जाय छे अने त्यां आठ दिवस सुधी उत्सव करे
छे.
आजे भगवानना निर्वाणनो दिवस छे, ने आ
अष्टप्राभृतमां पण आजे निर्वाणनी ज गाथा वंचाय छे. कई
रीते निर्वाण थाय अने केवा पुरुषने निर्वाण थाय–ते वात
शीलपाहुडनी गाथा ११–१२मां कहे छे–