मागशर: २४८८ : प :
णाणेण दंसणेण य तवेण चरिएण सम्मसहिण्ण।
होहदि परिणिव्वाणं जीवाणं चरितसुद्धाणं।। ११।।
उपयोगने अंतरमां ऊंडो वाळीने चैतन्यना शांतरसने धर्मी अनुभवे
छे. जेम कुवामां ऊंडेथी पाणी खेंचे छे, तेम सम्यक्् आत्मस्वभावरूप
कारणपरमात्माने ध्येयरूपे पकडीने, उपयोगने तेमां ऊंडो ऊंडो उतारीने पूर्ण
शुद्धता थाय छे; आ रीतथी परिनिर्वाण थाय छे. निर्वाण ए कोई बहारनी
चीज नथी पण आत्मानी पर्याय परम शुद्ध थई गई ने विकारथी छूटी गई
तेनुं नाम ज निर्वाण छे.
भगवानने मनुष्यदेह हतो माटे निर्वाण थयुं के
वज्रऋषभनाराचसंहनन हतुं माटे निर्वाण थयुं–एम नथी, पण सम्यग्दर्शन–
सम्यग्ज्ञान–सम्यक््चारित्र अने सम्यक््तपथी भगवान मुक्ति पाम्या. आजे
महावीर भगवान मुक्ति पाम्या, तेमनुं आ शासन चाले छे. भगवान
सम्यग्दर्शनपूर्वक दर्शन–ज्ञान अने चारित्रथी परिनिर्वाण पाम्या अने एवो ज
उपदेश आपी गया छे. भगवान पोताना परम आनंदमां महाली रह्या छे,
अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करी रह्या छे. आवी निर्वाणदशानो आजनो
मंगळ दिवस छे ने आ निर्वाणना उपायनी गाथा पण मंगळ छे. आ रीते
दीवाळीमां मांगळिक छे.
जेणे चैतन्यमां ज उपयोग जोडीने बाह्यध्येयथी उपयोगने पाछो
वाळ्यो छे एटले विषयोथी विरक्त थईने चैतन्यना आनंदना दूधपाकनो
स्वाद ल्ये छे, आनंदना अनुभवने उग्र करीने स्वादमां ल्ये छे, एवा पुरुष
नियमथी चोक्कस ध्रुवपणे निर्वाणने पामे छे.
जुओ, आ निर्वाणनो ध्रुवमार्ग! अंतर्मुख थईने जेणे आवो मार्ग
प्रगट कर्यो ते पाछो फरे नहि, ध्रुवपणे ते निर्वाणने पामे ज. दर्शनशुद्धिपूर्वक
द्रढ चारित्र वडे जे जीव चैतन्यमां एकाग्र थाय छे तेने बाह्यविषयोथी विरक्ति
थई जाय छे, एनुं नाम ज शील छे, ने एवा सम्यक्् शीलवाळो जीव जरूर
निर्वाण पामे छे. चैतन्यध्येयने चूकीने जेणे परने ध्येय बनाव्युं छे ते जीवने
शीलनी रक्षा नथी, शरीरथी भले ब्रह्मचर्य पाळतो होय पण जो अंदरमां
रागनी रुचि छे तो तेने शीलनी रक्षा नथी, तेने दर्शनशुद्धि नथी; तेना
उपयोगमां राग साथे एकतारूप विषयोनुं ज सेवन छे. चैतन्यस्वभावनी
रुचि जेणे प्रगट करी छे ने रागनी रुचि छोडी छे तेने चैतन्यध्येये
बाह्यविषयोनुं ध्येय छूटी जाय छे. आवुं शील ते निर्वाणमार्गमां प्रधान छे. ए
रीते बे गाथामां तो दर्शनशुद्धि उपरांत चारित्रनी वात करीने साक्षात्
निर्वाणमार्ग कह्यो.
हवे एक बीजी वात कहे छे: कोई ज्ञानी धर्मात्माने कदाच विषयोथी
विरक्ति न थई होय एटले के चारित्रदशानी स्थिरता न प्रगटी होय पण
श्रद्धा बराबर छे, ने मार्ग तो विषयोनी विरक्तिरूप ज छे एम यथार्थ मार्ग
प्रतिपादन करे छे,