Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: २१८
तो ते ज्ञानीने मार्गनी प्राप्ति कहेवामां आवे छे. सम्यक्् मार्गनुं
पोताने भान छे ने सम्यक्् मार्गनुं बराबर प्रतिपादन करे छे,
पण हजी विषयोथी विरक्तिरूप मुनिदशा वगेरे नथी–अस्थिरता
छे, तो पण ते ज्ञानी धर्मात्मा मोक्षमार्गना साधक छे, ते मंगळरूप
छे, तेने ईष्टमार्गनी प्राप्ति छे अने यथार्थ मार्ग दर्शावनारा छे
तेथी तेनाथी बीजाने पण सम्यक्् मार्गनी प्राप्ति थाय छे. पण जे
जीव विषयोथी–रागथी लाभ मनावे तेने तो सम्यक््मार्गनी श्रद्धा
ज नथी, ते तो उन्मार्गे छे, अने उन्मार्गनो बतावनार छे. धर्मीने
राग होय पण तेने ते बंधनुं ज कारण जाणे छे, तेथी राग होवा
छतां तेनी श्रद्धामां विपरीतता नथी, तेने मार्गनी प्राप्ति छे ने
तेनाथी बीजा जीवो पण मार्गनी प्राप्ति करी शकशे. सत्मार्गने
पामेला जीवो ज सत्मार्गनी प्राप्तिमां निमित्तरूप होय.
अज्ञानी रागथी पोते लाभ माने छे, ने रागथी लाभ
थवानुं मनावे छे, एटले ते पोते मार्गथी भ्रष्ट छे ने तेनी पासेथी
मार्गनी प्राप्ति थई शकती नथी. अहा, चैतन्यना श्रद्धा–ज्ञान अने
तेमां लीनतारूप वीतरागता ते ज मोक्षनो मार्ग छे. मोक्षार्थीए
एवी वीतरागता ज कर्तव्य छे, क््यांय जरापण राग कर्तव्य नथी.
रागनो एक कणीयो पण मोक्षने रोकनार छे ते मोक्षनुं साधन केम
थाय? आम ज्ञानीने श्रद्धा छे. अहा, ज्यां पुण्यभावने पण
छोडवा जेवो माने छे त्यां ज्ञानी पापमां तो स्वछंदे केम प्रवर्ते?
चारित्रदशा रहित होय तो पण सम्यग्द्रष्टि मोक्षमार्गमां ज छे,
केमके तेने चारित्रनी भावना छे ने रागनी भावना नथी; श्रद्धामां
ते आखा जगतथी विरक्त छे; अद्भुत ज्ञान वैराग्यनी शक्ति
तेने प्रगटी छे, अंतरमां चैतन्यने ध्येय बनावीने रागथी
भिन्नतानुं भान थयुं छे. आवा भान वगर रागथी लाभ माने
ने प्ररूपे ते तो उन्मार्गमां छे, तेनो ज्ञाननो उघाड पण बधोय
निरर्थक छे; भगवानना मार्गने तेणे जाण्यो नथी, भगवान कई
रीते मोक्ष पाम्या तेनी तेने खबर नथी. समकितीने अस्थिरताने
लीधे विषयो न छूटे तोपण तेनुं ज्ञान बगडतुं नथी, द्रष्टिना
विषयमां शुद्ध चैतन्यस्वभावने पकडयो छे ते कदी छूटतो नथी, ते
ध्येयना आश्रये ते सम्यक्् मार्गमां वर्ते छे, मोक्षनां माणेकस्तंभ
तेना आत्मामां रोपाई गयां छे... वीरप्रभुना मंगलमार्गे ते पण
मुक्तिने साधी रह्या छे.
पूर्णतारूप परिनिर्वाण मंगळरूप छे ने
तेनी शरूआतरूप सम्यक्त्व पण मंगळरूप छे.
आ रीते साध्य अने साधक ए बंनेनी वात आजे
मांगळिकमां आवी छे; आ रीते दिवापलीनुं मांगळिक कर्युं.
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